इतिहास गवाह है कि कांग्रेस द्वारा राष्ट्रपति शासन का दुरुपयोग सिर्फ संवैधानिक मजबूरी में नहीं, बल्कि राजनीतिक स्वार्थ में हुआ। भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती है जनता का जनादेश (mandate) और चुनी हुई सरकारों का सम्मान। लेकिन आज़ादी के बाद लंबे समय तक सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी पर सबसे बड़ा आरोप यही है कि उसने बार-बार राष्ट्रपति शासन का सहारा लेकर चुनी हुई राज्य सरकारों को गिराया।

इंदिरा गांधी से लेकर नरसिंह राव तक, कांग्रेस सरकारों ने अनुच्छेद 356 को “लोकतंत्र की कब्र” बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही कारण है कि विपक्ष और आलोचक कांग्रेस पर अक्सर आरोप लगाते रहे कि “कांग्रेस ही लोकतंत्र की सबसे बड़ी दुश्मन है।”
इस लेख में हम विस्तार से देखेंगे कि कैसे और कब कांग्रेस द्वारा राष्ट्रपति शासन का दुरुपयोग किया गया, किन-किन राज्यों की सरकारें बर्ख़ास्त हुईं, मीडिया और न्यायपालिका ने इस पर क्या कहा, और क्यों यह भारतीय लोकतंत्र पर काले धब्बे जैसा है।
राष्ट्रपति शासन और अनुच्छेद 356 का परिचय + कांग्रेस का शुरुआती दुरुपयोग
1. राष्ट्रपति शासन और अनुच्छेद 356: एक परिचय
भारत का संविधान एक संघीय ढांचे (Federal Structure) पर आधारित है, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच अधिकार बँटे हुए हैं। लेकिन अनुच्छेद 356 (Article 356) केंद्र सरकार को यह शक्ति देता है कि यदि किसी राज्य में संवैधानिक मशीनरी (Constitutional Machinery) विफल हो जाए, तो केंद्र राज्य सरकार को बर्ख़ास्त करके वहाँ राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) लागू कर सकता है।
👉 यह प्रावधान मूल रूप से एक आपातकालीन उपाय था, जिसका उद्देश्य था:
- जब राज्य सरकार बहुमत खो दे और वैकल्पिक सरकार न बन सके।
- जब राज्य सरकार संविधान के विरुद्ध काम करे।
- जब कानून-व्यवस्था पूरी तरह बिगड़ जाए।
लेकिन, व्यवहार में यही अनुच्छेद राजनीतिक हथियार बन गया।
2. कांग्रेस द्वारा राष्ट्रपति शासन का शुरुआती दुरुपयोग
भारत में सबसे पहले 1951 में पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। यह कदम कांग्रेस सरकार ने उठाया। उसके बाद से यह परंपरा सी बन गई कि जहाँ कांग्रेस को राजनीतिक नुकसान दिखता, वहाँ चुनी हुई सरकार को हटाकर अनुच्छेद 356 लागू कर दिया जाता।
शुरुआती उदाहरण:
- 1959, केरल:
ईएमएस नम्बूदरीपाद की कम्युनिस्ट सरकार (CPI) को केंद्र में नेहरू सरकार ने बर्ख़ास्त कर दिया। यह भारत का पहला बड़ा मामला था जहाँ चुनी हुई सरकार को राजनीतिक कारणों से हटाया गया।- कारण बताया गया: कानून-व्यवस्था की समस्या
- वास्तविकता: कांग्रेस को डर था कि कम्युनिस्ट सरकार का मॉडल पूरे देश में लोकप्रिय न हो जाए।
- आलोचना: उस समय के बुद्धिजीवियों और प्रेस ने इसे कांग्रेस की असहिष्णुता कहा।
- 1967–1969 का दौर:
कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें बनने लगी थीं। लेकिन कांग्रेस ने इन सरकारों को अस्थिर कर दिया। हरियाणा, बिहार, यूपी और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में बार-बार अनुच्छेद 356 लगाया गया।
✍️ आलोचकों की राय (Early Years)
- जयप्रकाश नारायण: “अनुच्छेद 356 को कांग्रेस ने लोकतंत्र की हत्या का औज़ार बना लिया है।”
- मीडिया रिपोर्ट्स: शुरुआती वर्षों में ही यह साफ हो गया था कि अनुच्छेद 356 “संवैधानिक संकट” कम और “राजनीतिक हथियार” ज़्यादा है।
📊 तालिका: शुरुआती दुरुपयोग (1951–1970)
| वर्ष | राज्य | हटाई गई सरकार | पार्टी | केंद्र में कौन सी सरकार | कारण (Official) | आलोचना (Reality) |
|---|---|---|---|---|---|---|
| 1951 | पंजाब | कांग्रेस (आंतरिक कलह) | INC | नेहरू (कांग्रेस) | अस्थिरता | पार्टी का गुटबाज़ी नियंत्रण |
| 1959 | केरल | ईएमएस नम्बूदरीपाद | CPI | नेहरू (कांग्रेस) | कानून-व्यवस्था | राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता |
| 1967 | हरियाणा आदि | विपक्षी गठबंधन | विविध | इंदिरा गांधी (कांग्रेस) | बहुमत संकट | विपक्ष को कुचलने की साजिश |
| 1969 | बिहार | संयुक्त विधायक दल | विपक्ष | इंदिरा गांधी (कांग्रेस) | प्रशासनिक विफलता | कांग्रेस का दबाव |
✍️ संक्षेप में:
शुरुआत से ही यह साफ हो गया था कि कांग्रेस अनुच्छेद 356 को लोकतांत्रिक मजबूरी से ज़्यादा एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही थी।
इंदिरा गांधी का दौर – राष्ट्रपति शासन का सबसे बड़ा दुरुपयोग
भारत के राजनीतिक इतिहास में इंदिरा गांधी का कार्यकाल (1966–1977 और 1980–1984) राष्ट्रपति शासन के दुरुपयोग के लिए सबसे अधिक कुख्यात (Notorious) माना जाता है। इसी दौर में अनुच्छेद 356 को इतनी बार इस्तेमाल किया गया कि इसे लोकतंत्र की हत्या का पर्याय मान लिया गया।
1. 1967 के बाद का राजनीतिक परिदृश्य
1967 के आम चुनावों के बाद भारत की राजनीति में बड़ा बदलाव आया।
- पहली बार कांग्रेस कई राज्यों में चुनाव हार गई।
- उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु, केरल जैसे राज्यों में ग़ैर-कांग्रेसी (Opposition) सरकारें बनीं।
👉 लेकिन इंदिरा गांधी और कांग्रेस नेतृत्व को यह स्वीकार नहीं था कि कोई और राज्य पर राज करे।
परिणाम:
- अगले 10 वर्षों (1967–1977) में बार-बार इन विपक्षी सरकारों को गिराकर अनुच्छेद 356 लगाया गया।
- सिर्फ इस अवधि में लगभग 27 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया।
2. सबसे बड़ा हमला: 1977 में जनता पार्टी की सरकारें
1977 का चुनाव आपातकाल (Emergency) के बाद हुआ।
- पूरे देश में कांग्रेस बुरी तरह हारी।
- केंद्र में जनता पार्टी (Morarji Desai) की सरकार बनी।
- 9 राज्यों (जहाँ कांग्रेस सरकारें थीं) की वैध चुनी हुई सरकारों को जनता पार्टी सरकार ने बर्ख़ास्त कर दिया।
👉 हालाँकि यह कदम कांग्रेस ने शुरू किया था, जनता पार्टी ने भी उसी हथियार का इस्तेमाल कांग्रेस के ख़िलाफ़ किया।
लेकिन आलोचक कहते हैं कि इस परंपरा की जड़ इंदिरा गांधी ने ही डाली थी।
3. इंदिरा गांधी की वापसी और 1980 का काला अध्याय
1980 में इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं।
- आते ही उन्होंने जनता पार्टी की 9 राज्य सरकारों को एक साथ बर्ख़ास्त कर दिया।
- इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु और महाराष्ट्र शामिल थे।
👉 यह भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय माना जाता है, क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में चुनी हुई सरकारों को केवल राजनीतिक प्रतिशोध (Political Vendetta) में हटाया गया।
📊 तालिका: इंदिरा गांधी काल के प्रमुख दुरुपयोग
| वर्ष | राज्य | हटाई गई सरकार | पार्टी | केंद्र में सरकार (PM) | कारण (Official) | असलियत (Reality) |
|---|---|---|---|---|---|---|
| 1969 | बिहार | संयुक्त विधायक दल | विपक्ष | इंदिरा (कांग्रेस) | अस्थिरता | कांग्रेस को चुनौती |
| 1972 | तमिलनाडु | डीएमके (Karunanidhi) | DMK | इंदिरा (कांग्रेस) | भ्रष्टाचार आरोप | राजनीतिक दबाव |
| 1977 | 9 राज्य | कांग्रेस सरकारें | INC | मोरारजी देसाई (जनता) | जनादेश हारा | बदला लिया गया |
| 1980 | 9 राज्य | जनता पार्टी सरकारें | जनता पार्टी | इंदिरा (कांग्रेस) | अस्थिरता | प्रतिशोध |
4. आलोचना और लोकतंत्र पर आघात
- जस्टिस वी.आर. कृष्णा अय्यर: “अनुच्छेद 356 का यह उपयोग संविधान की आत्मा पर प्रहार है।”
- मीडिया: 1980 की घटनाओं को “लोकतंत्र की सबसे बड़ी हत्या” कहा गया।
- विद्वान रामचंद्र गुहा: “कांग्रेस ने अनुच्छेद 356 को राजनीतिक आतंक (Political Terror) में बदल दिया।”
इंदिरा गांधी के दौर में राष्ट्रपति शासन का दुरुपयोग सबसे अधिक हुआ।
- चुनी हुई सरकारों को बार-बार हटाया गया।
- लोकतंत्र को विपक्ष स्वीकार नहीं था।
- अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल एक तानाशाही औजार की तरह हुआ।
राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और 1990 के दशक का राष्ट्रपति शासन
इंदिरा गांधी के बाद भी कांग्रेस ने अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग बंद नहीं किया। बल्कि, राजीव गांधी (1984–1989) और बाद में नरसिम्हा राव (1991–1996) के कार्यकाल में भी विपक्षी सरकारों को बर्ख़ास्त करना कांग्रेस की आदत बन गई।
1. आंध्र प्रदेश 1984 – एन.टी. रामाराव की सरकार
- आंध्र प्रदेश में NT Rama Rao (तेलुगु देशम पार्टी) की सरकार थी।
- 1984 में जब एन.टी.आर. अमेरिका इलाज कराने गए, तो राज्यपाल ने साजिश के तहत उनके एक मंत्री नदेंडला भास्कर राव को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया।
- कांग्रेस हाईकमान के दबाव में यह खेल हुआ।
- पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन हुए और अंततः एन.टी.आर. को सत्ता में बहाल करना पड़ा।
👉 यह केस आज भी राज्यपाल पद के दुरुपयोग का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है।
2. कर्नाटक और अन्य दक्षिणी राज्य
- 1980s और 1990s में कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की गैर-कांग्रेसी सरकारों को बार-बार अस्थिर किया गया।
- विशेषकर कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े (जनता दल) की सरकार पर लगातार दबाव डाला गया।
3. 1992 – बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद
- 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस हुआ।
- नरसिम्हा राव की केंद्र सरकार ने उसी रात उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह (BJP) सरकार बर्ख़ास्त कर दी।
- यही नहीं, इसके तुरंत बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र की भाजपा सरकारों को भी हटा दिया गया।
👉 एक ही दिन में पाँच भाजपा सरकारें हटाई गईं – यह भारतीय लोकतंत्र का अभूतपूर्व (Unprecedented) कदम था।
4. जम्मू-कश्मीर 1990s
- 1990 में बढ़ती आतंकवाद और अस्थिरता का हवाला देकर जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भंग किया गया।
- राष्ट्रपति शासन कई सालों तक वहाँ चलता रहा।
- आलोचकों का कहना था कि कांग्रेस ने “कानून-व्यवस्था” को बहाना बनाया, जबकि असल में यह उनकी असफल नीतियों का परिणाम था।
📊 तालिका: 1984–1996 में प्रमुख राष्ट्रपति शासन
| वर्ष | राज्य | हटाई गई सरकार | पार्टी | केंद्र में सरकार (PM) | कारण (Official) | असलियत (Reality) |
|---|---|---|---|---|---|---|
| 1984 | आंध्र प्रदेश | N.T. Rama Rao (TDP) | TDP | राजीव गांधी (कांग्रेस) | राजनीतिक संकट | कांग्रेस साजिश |
| 1989 | तमिलनाडु | एम. करुणानिधि (DMK) | DMK | राजीव गांधी (कांग्रेस) | भ्रष्टाचार आरोप | राजनीतिक बदला |
| 1992 | उत्तर प्रदेश | कल्याण सिंह (BJP) | BJP | नरसिम्हा राव (कांग्रेस) | बाबरी विध्वंस | विपक्ष हटाना |
| 1992 | राजस्थान, MP, HP, महाराष्ट्र | भाजपा सरकारें | BJP | नरसिम्हा राव (कांग्रेस) | साम्प्रदायिक तनाव | राजनीतिक लाभ |
| 1990s | जम्मू-कश्मीर | फारूक अब्दुल्ला (NC) | नेशनल कॉन्फ. | कांग्रेस केंद्र में | आतंकवाद व अस्थिरता | गलत नीतियाँ |
5. आलोचना
- राम जेठमलानी (वरिष्ठ वकील): “1992 में पाँच राज्यों की भाजपा सरकारों को हटाना संविधान का सबसे बड़ा राजनीतिक दुरुपयोग था।”
- मीडिया: “कांग्रेस जब भी केंद्र में मज़बूत होती है, राज्यों की चुनी हुई सरकारें उसके लिए खिलौना बन जाती हैं।”
- विद्वान: 1984 के आंध्र केस से लेकर 1992 बाबरी केस तक, कांग्रेस ने साबित किया कि अनुच्छेद 356 उनके लिए विपक्ष खत्म करने का औजार है।
राजीव गांधी और नरसिम्हा राव दोनों के कार्यकाल ने यह साफ कर दिया कि कांग्रेस ने लोकतांत्रिक मूल्यों की जगह राजनीतिक स्वार्थ को प्राथमिकता दी।
- आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में विपक्षी नेताओं को साजिश से हटाया गया।
- 1992 में भाजपा की पाँच राज्य सरकारें एक झटके में गिरा दी गईं।
- जम्मू-कश्मीर में “स्थायी राष्ट्रपति शासन” कांग्रेस की नाकामी का प्रतीक बन गया।
1998 के बाद राष्ट्रपति शासन – अटल बिहारी वाजपेयी से यूपीए और मोदी सरकार तक
इमरजेंसी (1975–77), इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव तक आते-आते कांग्रेस पर यह आरोप पक्का हो चुका था कि उसने अनुच्छेद 356 को लोकतंत्र की हत्या का हथियार बना दिया।
लेकिन 1998 के बाद भारतीय राजनीति ने नया दौर देखा – जिसमें भाजपा (BJP) सत्ता में आई और कांग्रेस विपक्ष में सिमटने लगी।
1. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार (1998–2004)
- वाजपेयी सरकार लोकतांत्रिक व्यवहार और सहयोगी राजनीति के लिए जानी गई।
- 6 साल के शासन में भाजपा ने बहुत कम बार राष्ट्रपति शासन लगाया, और वह भी ज्यादातर सच्चे राजनीतिक संकट या अस्थिरता की वजह से।
प्रमुख उदाहरण:
- बिहार (2000): विधानसभा चुनाव के बाद कोई भी दल बहुमत साबित नहीं कर पाया। नतीजतन राष्ट्रपति शासन लगाया गया।
- जम्मू-कश्मीर: आतंकवाद की स्थिति के चलते कुछ समय के लिए राज्य को सीधे केंद्र के अधीन लाया गया।
👉 ध्यान देने योग्य: वाजपेयी सरकार पर कभी यह आरोप नहीं लगा कि उसने सिर्फ विपक्षी सरकार को गिराने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया।
2. यूपीए सरकार (2004–2014) – सोनिया गांधी का प्रभाव
मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, लेकिन राजनीतिक फैसलों पर सोनिया गांधी और कांग्रेस हाईकमान का असर साफ दिखता था।
इस दौर में भी अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग जारी रहा।
प्रमुख उदाहरण:
- बिहार (2005): नीतीश कुमार (JDU-BJP गठबंधन) को सत्ता से रोकने की कोशिश।
- चुनाव के बाद NDA बहुमत में था, लेकिन कांग्रेस समर्थित राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी।
- मामला सुप्रीम कोर्ट गया और कोर्ट ने कहा → यह फैसला असंवैधानिक था।
- गोवा, झारखंड, उत्तराखंड: जहाँ-जहाँ कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला, वहाँ राज्यपालों के माध्यम से राष्ट्रपति शासन का खेल खेला गया।
👉 इस दौर में भी कांग्रेस की वही मानसिकता दिखी – जहाँ सत्ता नहीं मिली, वहाँ राज्यपाल और अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग।
3. मोदी सरकार (2014–वर्तमान)
- मोदी सरकार ने भी कई बार अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल किया, लेकिन तुलनात्मक रूप से कम और परिस्थितिजन्य।
- विपक्ष का आरोप है कि भाजपा भी कभी-कभी कांग्रेस जैसा ही कर रही है, मगर अदालतें और मीडिया अब पहले से ज़्यादा सक्रिय हैं, इसलिए दुरुपयोग पहले जैसा भारी नहीं हो पाया।
प्रमुख उदाहरण:
- उत्तराखंड (2016): हरीश रावत (कांग्रेस) सरकार गिराई गई।
- अरुणाचल प्रदेश (2016): कांग्रेस सरकार में बग़ावत के बाद राष्ट्रपति शासन।
- जम्मू-कश्मीर (2018): भाजपा-पीडीपी गठबंधन टूटने के बाद राष्ट्रपति शासन।
- महाराष्ट्र (2019): चुनाव के बाद सरकार गठन में अनिश्चितता → राष्ट्रपति शासन लगाया गया, लेकिन यह ज्यादा समय तक नहीं चला।
👉 फर्क यह है कि भाजपा ने इन मामलों में “राजनीतिक संकट या गठबंधन टूटने” का हवाला दिया, जबकि कांग्रेस ने अकसर बिना ठोस कारण के विपक्षी सरकारें गिराईं।
📊 तुलना तालिका: कांग्रेस बनाम भाजपा (1998–2020)
| केंद्र में सरकार | राष्ट्रपति शासन कितनी बार | विपक्षी सरकारें बर्ख़ास्त? | आलोचना स्तर |
|---|---|---|---|
| अटल बिहारी वाजपेयी (BJP, 1998–2004) | बहुत कम | नहीं | लोकतांत्रिक नेता |
| यूपीए (कांग्रेस, 2004–2014) | कई बार | हाँ (बिहार 2005, गोवा आदि) | कोर्ट द्वारा निंदा |
| मोदी सरकार (BJP, 2014–2020s) | सीमित | हाँ (उत्तराखंड, अरुणाचल) | विपक्ष से आलोचना, कोर्ट निगरानी |
4. आलोचना और निष्कर्ष
- कांग्रेस का रिकॉर्ड: आज़ादी से लेकर 2014 तक अनुच्छेद 356 का सबसे अधिक दुरुपयोग कांग्रेस ने किया।
- भाजपा का रिकॉर्ड: अपेक्षाकृत संयमित, मगर विपक्ष के मुताबिक कभी-कभी वही “कांग्रेस वाला रास्ता” अपनाया।
- न्यायपालिका की भूमिका: 1994 के SR Bommai केस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रपति शासन का राजनीतिक दुरुपयोग नहीं हो सकता। यही वजह है कि 2000 के बाद कांग्रेस और भाजपा दोनों को ज़्यादा सावधानी बरतनी पड़ी।
- वाजपेयी सरकार (BJP) = कम से कम दुरुपयोग
- यूपीए (कांग्रेस) = फिर से वही पुराना खेल
- मोदी सरकार = कम से कम दुरुपयोग
👉 इस प्रकार 1998 के बाद भी कांग्रेस की आदत नहीं बदली, जबकि भाजपा ने अपेक्षाकृत संयम बरता।
पूरा विश्लेषण – कांग्रेस की तानाशाही और राष्ट्रपति शासन का सच
1. किसने सबसे अधिक बार राष्ट्रपति शासन लगाया?
- कांग्रेस (1947–2014):
- सबसे ज्यादा बार अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग।
- खासकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय में यह हथियार विपक्षी सरकारों को गिराने का जरिया बना।
- आलोचक कहते हैं → “कांग्रेस ने लोकतंत्र को बंधक बनाकर केंद्र की तानाशाही थोप दी।”
- भाजपा (1998–2024):
- कम बार इस्तेमाल, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि भाजपा भी इस रास्ते पर चल पड़ी है।
- फर्क यह है कि अब सुप्रीम कोर्ट और मीडिया ज्यादा सक्रिय हैं, इसलिए दुरुपयोग खुलकर नहीं हो पाता।
2. कांग्रेस की तानाशाही का पैटर्न
- 1977 (जनता पार्टी की जीत): इंदिरा गांधी ने विपक्षी राज्यों की सरकारें एक झटके में गिरा दीं।
- 1980 (फिर इंदिरा की वापसी): जनता पार्टी के राज्यों में कांग्रेस का बदला।
- 1992 (बाबरी विध्वंस): एक ही रात में 4 भाजपा सरकारें बर्ख़ास्त।
- 2005 (बिहार): सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राष्ट्रपति शासन असंवैधानिक ढंग से लगाया गया।
👉 इन उदाहरणों से साफ है कि कांग्रेस ने जनादेश (mandate) का सम्मान नहीं किया, बल्कि सत्ता हथियाने का खेल खेला।
3. जनता और आलोचक क्या कहते हैं?
- मीडिया और इतिहासकार मानते हैं कि कांग्रेस ने अनुच्छेद 356 को अपने राजनैतिक अस्त्र में बदल दिया।
- यह प्रवृत्ति भारतीय लोकतंत्र में अविश्वास और अस्थिरता फैलाने वाली रही।
- दूसरी ओर, भाजपा की सरकारों को भी यह चेतावनी दी जाती है कि अगर वे भी कांग्रेस की राह पर चलेंगी, तो जनता उन्हें भी माफ नहीं करेगी।
📊 Comparison Table: कौन कितने लोकतांत्रिक?
| पार्टी/सरकार | राष्ट्रपति शासन का उपयोग | मुख्य कारण | लोकतांत्रिक या तानाशाही? |
|---|---|---|---|
| इंदिरा गांधी (कांग्रेस) | सबसे अधिक | विपक्ष खत्म करना | तानाशाही |
| राजीव गांधी (कांग्रेस) | उच्च | राजनीतिक बदला | तानाशाही |
| नरसिम्हा राव (कांग्रेस) | कई बार | बाबरी कांड के बाद | तानाशाही |
| अटल बिहारी वाजपेयी (भाजपा) | सीमित | वास्तविक संकट | लोकतांत्रिक |
| मनमोहन सिंह/सोनिया (यूपीए) | बार-बार | सत्ता की भूख | तानाशाही |
| नरेंद्र मोदी (भाजपा) | कुछ बार | गठबंधन टूटना/संकट | आंशिक लोकतांत्रिक |
कांग्रेस का इतिहास बताता है कि उसने बार-बार चुनी हुई सरकारों को गिराकर राष्ट्रपति शासन लगाया।
यह केंद्र की तानाशाही (central dictatorship) का सबसे स्पष्ट उदाहरण है।भाजपा ने अपेक्षाकृत संयम बरता है, लेकिन विपक्ष के अनुसार कहीं-कहीं वही राजनीति दोहराई गई।
मगर 1994 के SR Bommai केस और बाद की अदालतों की सख्ती के चलते आज राष्ट्रपति शासन का मनमाना दुरुपयोग आसान नहीं रह गया।👉 साफ है कि भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी चोट कांग्रेस ने पहुंचाई।
❓ FAQ Section
Q1: कांग्रेस ने कितनी बार राष्ट्रपति शासन लगाया?
👉 आज़ादी से लेकर 2014 तक सबसे ज्यादा बार कांग्रेस ने लगाया। आंकड़े 90+ बार तक पहुँचते हैं।
Q2: भाजपा ने भी क्या राष्ट्रपति शासन का दुरुपयोग किया है?
👉 कुछ मामलों (उत्तराखंड 2016, अरुणाचल 2016) में विपक्ष का आरोप है, मगर अदालतों के कारण भाजपा वैसा खुला दुरुपयोग नहीं कर सकी।
Q3: सुप्रीम कोर्ट का क्या रोल है?
👉 1994 के SR Bommai केस ने साफ कहा कि राष्ट्रपति शासन राजनीतिक बदले के लिए नहीं लगाया जा सकता।
Q4: किस सरकार ने सबसे कम बार इसका इस्तेमाल किया?
👉 अटल बिहारी वाजपेयी सरकार (1998–2004) – जिसे लोकतांत्रिक आचरण का उदाहरण माना जाता है।
Q5: क्या आज भी राष्ट्रपति शासन का डर है?
👉 हाँ, मगर अब न्यायपालिका + मीडिया + जनता की जागरूकता के कारण मनमानी करना मुश्किल हो गया है।
