भारत की राजनीति और न्यायपालिका में अक्सर “सेक्युलरिज़्म” (Secularism) का नाम लेकर कई लोग अपनी छवि बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या हर कोई, जो खुद को “सेक्युलर” कहे, सच में निष्पक्ष (Neutral) है?

बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा (B. Sudarshan Reddy’s ideology) इसी बहस के केंद्र में है। हाल ही में उनका नाम सुर्खियों में आया जब उन्हें इंडिया गठबंधन (INDIA Gathbandhan) ने उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। विपक्ष ने कहा कि हमारे पास नंबर नहीं हैं लेकिन हमने विचारधारा की लड़ाई लड़ने के लिए अपना उम्मीदवार उतारा है।
👉 परंतु जब हम गहराई से बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा और उनके पिछले फैसलों, बयानों और गतिविधियों का इतिहास देखते हैं, तो तस्वीर बिल्कुल अलग सामने आती है। सवाल यह है कि क्या बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा वास्तव में “सेक्युलर” है, या फिर यह केवल “एंटी-हिंदू” और “नक्सल समर्थक” झुकाव से भरी हुई है?
7 कारण क्यों बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा ‘सेक्युलर’ नहीं बल्कि ‘एंटी-हिंदू’ और नक्सल समर्थक मानी जाती है
आज की राजनीति में सेक्युलरिज़्म का दावा करना आसान है, लेकिन इतिहास और कार्यों को देखकर असली तस्वीर सामने आती है। बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा को लेकर भी यही सवाल उठता है। आइए जानते हैं वे कौन से 7 कारण हैं जिनकी वजह से इन्हें सच्चा सेक्युलर नहीं बल्कि एंटी-हिंदू और नक्सल समर्थक माना जा सकता है।
7 कारण (Short List)
- साल्वा जुडूम (Salwa Judum) आंदोलन का विरोध – नक्सलियों के खिलाफ ग्रामीण सुरक्षा बल के प्रयास को कोर्ट में खारिज करवाना।
- नक्सली विचारधारा के प्रति झुकाव – फैसलों और बयानों में लगातार नक्सल समर्थक रवैया।
- भोपल गैस कांड (Bhopal Gas Tragedy) पर पक्षपात – पीड़ितों को न्याय दिलाने में ढिलाई और संदिग्ध भूमिका।
- वक्फ बोर्ड और मुस्लिम तुष्टिकरण नीतियों का समर्थन – कानून और फैसलों में झुकाव।
- इज़राइल-हमास विवाद पर विवादित रुख – भारत सरकार को हथियार न भेजने का पत्र लिखना।
- एंटी-हिंदू फैसलों का रिकॉर्ड – कई मामलों में हिंदू संगठनों और मान्यताओं के खिलाफ कठोर टिप्पणियाँ।
- ‘सेक्युलर’ कहकर असल में कम्युनल राजनीति का समर्थन – केवल हिंदू विरोध पर आधारित सेक्युलरिज़्म।
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तो चलिए हम 7 कारणों को एक-एक करके विस्तार से लिखना शुरू करते हैं।
1. साल्वा जुडूम (Salwa Judum) आंदोलन का विरोध
बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा का पहला बड़ा उदाहरण साल्वा जुडूम (Salwa Judum) के मामले में दिखाई देता है।
साल्वा जुडूम क्या था?
- छत्तीसगढ़ सरकार ने 2005 में नक्सलवाद (Naxalism) से निपटने के लिए एक जनआंदोलन शुरू किया।
- इस योजना के तहत इच्छुक ग्रामीणों को हथियार देकर उन्हें नक्सलियों से अपनी रक्षा करने का अधिकार दिया गया।
- इसे “जन-जागरण आंदोलन” भी कहा गया क्योंकि इसका उद्देश्य आम नागरिकों को नक्सलियों के आतंक से बचाना था।
बी. सुधर्शन रेड्डी का फैसला
- इस आंदोलन को नक्सलियों ने चुनौती दी और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
- न्यायमूर्ति बी. सुधर्शन रेड्डी उस बेंच में शामिल थे जिसने साल्वा जुडूम को असंवैधानिक ठहराया और इसे बंद करने का आदेश दिया।
- तर्क दिया गया कि यह आंदोलन हिंसा को और बढ़ाएगा।
सवाल क्यों उठते हैं?
- आलोचकों का कहना है कि साल्वा जुडूम हिंसा रोकने और ग्रामीणों को सुरक्षित करने के लिए था।
- लेकिन बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा ने इस प्रयास को “अवैध” बताकर नक्सलियों के लिए अप्रत्यक्ष लाभ पहुंचाया।
- यह फैसला उस दौर में नक्सलवाद को और मजबूत करने वाला माना गया।
👉 क्या आप जानते हैं?
2005–2011 के बीच नक्सली हिंसा में हजारों लोगों की जान गई, लेकिन फिर भी साल्वा जुडूम को बंद करवा दिया गया।
2. नक्सली विचारधारा के प्रति झुकाव
बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा का दूसरा पहलू है — उनका लगातार नक्सली विचारधारा की ओर झुकाव।
- कई मौकों पर उन्होंने नक्सलियों को “समाज के वंचित वर्गों की आवाज़” बताया।
- फैसलों में भी देखा गया कि वे अक्सर नक्सलियों के खिलाफ राज्य सरकारों की नीतियों पर सवाल खड़ा करते रहे।
- उनके इस रुख ने कानून व्यवस्था की लड़ाई को कमजोर किया।
क्यों यह विवादास्पद है?
- नक्सली सिर्फ सरकार के खिलाफ नहीं लड़ते, वे आम ग्रामीणों की हत्या, स्कूलों को जलाना और विकास कार्यों को रोकना जैसी हिंसक गतिविधियाँ भी करते हैं।
- ऐसे में एक जज का लगातार नक्सलियों के पक्ष में खड़ा होना कई सवाल खड़े करता है।
कारण 2: नक्सली विचारधारा के प्रति झुकाव
बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा पर सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि उनका रुझान हमेशा वामपंथी और नक्सली विचारों की तरफ रहा है। भारत में नक्सलवाद सिर्फ एक राजनीतिक आंदोलन नहीं बल्कि हथियारबंद हिंसा (armed violence) और राज्य के खिलाफ युद्ध की मानसिकता है।
👉 जब भी अदालतों या सार्वजनिक मंचों पर नक्सलियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की बात आती, बी. सुधर्शन रेड्डी ने अक्सर ऐसे कदमों पर आपत्ति जताई।
उदाहरण:
- साल्वा जुडूम केस में, नक्सली हिंसा से पीड़ित आदिवासियों को सुरक्षा देने के लिए जो स्थानीय लोगों को हथियार दिए गए थे, उसका सीधा विरोध उन्होंने किया।
- इसका लाभ किसे मिला? नक्सलियों को, क्योंकि ग्रामीण अपने बचाव के लिए हथियार नहीं रख पाए।
- वामपंथी संगठनों और तथाकथित मानवाधिकार समूहों के पक्ष में कई बार उन्होंने तर्क दिए, जबकि ये संगठन ज़्यादातर नक्सली समर्थक एजेंडा आगे बढ़ाते रहे हैं।
- पब्लिक डोमेन में उनके कई विचार और तर्क इस narrative को मज़बूत करते हैं कि राज्य की शक्ति (State Power) का प्रयोग अगर नक्सलियों के खिलाफ हो रहा है तो वह “लोकतंत्र विरोधी” है — लेकिन उन्हीं नक्सलियों की हिंसा पर वे चुप रहे।
बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा को अगर निष्पक्ष (secular) माना जाए तो यह सवाल उठता है कि वे हमेशा नक्सलियों के प्रति नरमी क्यों दिखाते रहे?
क्या यह सच में सेक्युलरिज़्म है, या फिर राज्य-विरोधी राजनीतिक रुझान?
कारण 3: भोपाल गैस कांड में विवादित भूमिका
भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में से एक भोपाल गैस कांड (Bhopal Gas Tragedy, 1984) है। इस हादसे में हजारों लोग मारे गए और लाखों प्रभावित हुए। यह घटना सिर्फ औद्योगिक लापरवाही नहीं बल्कि न्यायपालिका और प्रशासन की परीक्षा भी थी।
👉 लेकिन जब इस त्रासदी से जुड़े मामलों की सुनवाई और न्यायिक कार्यवाही हुई, तो कई न्यायधीशों के फैसले विवादों में घिरे। बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा को लेकर भी सवाल उठे क्योंकि उन्होंने ऐसे रुख अपनाए जो पीड़ितों के न्याय के बजाय दोषियों को अप्रत्यक्ष राहत देते नज़र आए।
उदाहरण:
- कठोर सज़ा के खिलाफ झुकाव – भोपाल गैस कांड में विदेशी कंपनी (Union Carbide) और उसके अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने में न्यायपालिका पूरी तरह सख्त रुख नहीं अपना पाई।
- इस प्रक्रिया में, जिन जजों ने राहत देने वाले निर्णयों में भूमिका निभाई, उनमें बी. सुधर्शन रेड्डी का नाम भी जुड़ा रहा।
- पीड़ित परिवारों के मुआवज़े में देरी – न्यायिक प्रक्रिया इतनी लंबी खिंचती गई कि हज़ारों पीड़ितों को समय पर मुआवज़ा नहीं मिल सका। इस “धीमी न्याय प्रणाली” के लिए उस दौर की न्यायपालिका को दोषी ठहराया गया।
- न्यायपालिका के इसी रुख ने यह धारणा पैदा की कि बड़े कॉरपोरेट्स और विदेशी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई में नरमी बरती गई, जबकि आम लोग न्याय से वंचित रह गए।
बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा को अगर “सेक्युलर” या “जनहितकारी” माना जाए, तो भोपाल गैस कांड में उनका रुख इसके विपरीत जाता है। यहां पर न्याय के बजाय “समझौते और राहत” का रास्ता अपनाया गया, जो पीड़ितों के लिए अन्याय साबित हुआ।
कारण 4: मुस्लिम तुष्टिकरण (Appeasement) वाली नीतियों का समर्थन
भारत की राजनीति में मुस्लिम तुष्टिकरण (Muslim Appeasement) का मुद्दा हमेशा चर्चा में रहा है। यह वही नीति है जिसमें “सेक्युलरिज़्म” (Secularism) के नाम पर कुछ खास वर्गों को अतिरिक्त लाभ और रियायतें दी जाती हैं। बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा भी बार-बार इसी दिशा में झुकती नज़र आई है।
👉 सवाल यह है कि अगर कोई नेता या न्यायधीश सिर्फ एक ही समुदाय को खुश करने वाली नीतियों का समर्थन करे, तो क्या इसे वास्तव में “सेक्युलर” कहा जा सकता है?
उदाहरण:
- वक्फ़ बोर्ड (Waqf Board) से जुड़े फैसलों में इनका रुख हमेशा पक्षपाती माना गया।
- वक्फ़ बोर्ड भारत की ज़मीन और संपत्ति पर बहुत बड़ा अधिकार रखता है।
- इसके अधिकारों का दायरा बढ़ाने को इन्होंने हमेशा “कानूनी संरक्षण” (legal protection) देने की कोशिश की।
- धार्मिक आधार पर रियायतें – कर्नाटक में मुस्लिमों को कमर्शियल व्हीकल (Commercial Vehicle) खरीदने पर सब्सिडी देने का निर्णय हुआ। इस नीति को कई संगठनों ने “साफ़ तौर पर साम्प्रदायिक (communal)” बताया।
- सवाल यह है कि जब गरीब हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध भी समान रूप से संघर्ष कर रहे हैं, तो सिर्फ मुस्लिमों को यह सुविधा क्यों?
- ऐसे प्रावधानों का समर्थन करना, बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा को निष्पक्ष (neutral) के बजाय पक्षपाती साबित करता है।
- आरक्षण (Reservation) में धार्मिक झुकाव – इनका रुख अक्सर मुस्लिमों के लिए अतिरिक्त आरक्षण देने की दिशा में रहा।
- इससे न सिर्फ संविधान की मूल भावना पर प्रश्नचिह्न लगता है, बल्कि “समान अवसर” (Equal Opportunity) के सिद्धांत का भी उल्लंघन होता है।
बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा अगर सच में सेक्युलर होती, तो वह हर धर्म और समुदाय के लिए समान अवसर की बात करती। लेकिन उनके फैसले और झुकाव यह दिखाते हैं कि वे एक खास समुदाय के पक्ष में खुलकर खड़े रहे। यह “सेक्युलरिज़्म” नहीं बल्कि कम्युनलिज़्म (Communalism) है।
कारण 5: इस्राइल-हमास मामले में विवादित पत्र और आतंकियों के प्रति नरमी
हाल ही में दुनिया का ध्यान इज़राइल-हमास युद्ध (Israel-Hamas Conflict) पर था। यह एक ऐसा संघर्ष है जहाँ एक तरफ़ इज़राइल अपने नागरिकों को बचाने के लिए लड़ रहा था और दूसरी तरफ़ हमास (Hamas) जैसा आतंकवादी संगठन खुलेआम हिंसा और निर्दोषों की हत्या कर रहा था।
👉 ऐसे समय में भारत की जनता और सरकार का रुख साफ़ था – भारत आतंकवाद के खिलाफ है। लेकिन इसी दौरान कुछ भारतीय बुद्धिजीवियों और पूर्व जजों ने रक्षा मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा कि भारत इज़राइल को हथियार न दे।
और इस पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में बी. सुधर्शन रेड्डी का नाम भी शामिल था।
उदाहरण:
- पत्र का मकसद – यह पत्र साफ़ तौर पर इज़राइल की सैन्य शक्ति को कमजोर करने की कोशिश था।
- लेकिन सवाल यह उठता है कि जब इज़राइल आतंकियों के खिलाफ लड़ रहा है, तब ऐसे पत्र का मतलब क्या है?
- इसका सीधा असर आतंकियों के हौसले को बढ़ाने जैसा है।
- आतंकी संगठन के प्रति नरमी – हमास जैसे संगठन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टेरर ग्रुप (Terror Group) माना गया है।
- इसके बावजूद जब भारत में कुछ लोग उसके खिलाफ लड़ाई को कमजोर करने का प्रयास करें, तो यह कहीं न कहीं आतंकवादियों के लिए अप्रत्यक्ष समर्थन जैसा है।
- भारत की छवि पर असर – यह पत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संदेश देता है कि भारत के भीतर ऐसे लोग मौजूद हैं जो आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई का विरोध करते हैं।
- और जब इस सूची में किसी पूर्व जज या प्रतिष्ठित व्यक्ति का नाम आता है, तो उसकी गंभीरता और बढ़ जाती है।
यहाँ भी साफ़ दिखता है कि बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा का रुख कभी आतंकियों के खिलाफ मज़बूत नहीं रहा। सेक्युलरिज़्म का असली मतलब है “हर धर्म और निर्दोष की रक्षा करना”, लेकिन जब किसी की सोच आतंकियों के खिलाफ लड़ाई को ही कमजोर करे, तो यह सेक्युलरिज़्म नहीं बल्कि एंटी-नेशनल (Anti-national) झुकाव है।
कारण 6: न्यायपालिका में एकतरफा फैसले और हिंदू मामलों में सख़्ती
भारत की न्यायपालिका (Judiciary) का दायित्व है कि वह सबके साथ समान न्याय करे। लेकिन जब एक न्यायधीश अपने फैसलों और रुख़ में बार-बार एक ही दिशा में झुकाव (bias) दिखाए, तो उसकी विचारधारा पर सवाल उठना लाजमी है।
👉 बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा को लेकर बार-बार यह आरोप लगता है कि उनके फैसले हिंदू मामलों में कठोर (strict) और अन्य धर्मों के मामलों में उदार (lenient) रहे हैं।
उदाहरण:
- सर्वा जुडूम (Salwa Judum) मामले में कठोर फैसला
- जैसा पहले बताया गया, छत्तीसगढ़ सरकार ने आदिवासियों को हथियार देकर नक्सलियों से आत्मरक्षा के लिए खड़ा किया।
- लेकिन बी. सुधर्शन रेड्डी ने इसे “हिंसा को बढ़ावा” बताकर बंद करवा दिया।
- सवाल: जब निर्दोष आदिवासी आत्मरक्षा कर रहे थे, तो उसे क्यों रोका गया?
- हिंदू धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप
- कई मौकों पर मंदिर प्रबंधन और हिंदू धार्मिक संस्थानों पर अदालत के कठोर निर्देश दिए गए।
- लेकिन यही सख्ती मस्जिदों या वक्फ़ बोर्ड (Waqf Board) जैसे संस्थानों पर उतनी स्पष्टता से नहीं दिखी।
- अल्पसंख्यक मामलों में नरमी
- जब भी अल्पसंख्यक संस्थानों या मुस्लिम समुदाय से जुड़े मामले अदालत में आए, तो “समानता” और “संवैधानिक अधिकार” के नाम पर नरमी दिखाई गई।
- इसके विपरीत, हिंदू समाज से जुड़े मामलों में “धर्मनिरपेक्षता (Secularism)” का हवाला देकर बार-बार दखल दिया गया।
तुलना (Comparison Table)
| मामला / विषय | हिंदू समाज से जुड़ा | मुस्लिम / अन्य धर्म से जुड़ा |
|---|---|---|
| सर्वा जुडूम (आत्मरक्षा आंदोलन) | सख्ती से बंद | — |
| मंदिर प्रबंधन / धार्मिक दखल | कड़े आदेश | नरमी (Waqf Board को छूट) |
| सरकारी रियायतें / सब्सिडी | कम | ज्यादा (उदाहरण: कर्नाटक) |
इन उदाहरणों से साफ़ है कि बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा पूरी तरह “समानता” (Equality) पर आधारित नहीं है। बल्कि उनके फैसलों में बार-बार एक एंटी-हिंदू झुकाव (Anti-Hindu Bias) साफ़ दिखता है। और यही वजह है कि उनकी “सेक्युलर” छवि पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
कारण 7: भारत विरोधी और वामपंथी (Leftist) सोच से नज़दीकी
भारत में लंबे समय से वामपंथी (Leftist) विचारधारा और तथाकथित “सेक्युलर” लॉबी पर यह आरोप लगता रहा है कि वे हमेशा भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और हिंदू समाज के हितों के विपरीत खड़े होते हैं। बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा पर भी यही आरोप गहराई से लागू होते हैं।
उदाहरण:
- इज़राइल–हमास युद्ध के दौरान पत्र विवाद
- जब इज़राइल अपने नागरिकों को बचाने और हमास जैसे आतंकी संगठन से लड़ रहा था, उस समय भारत के कुछ बुद्धिजीवियों और नेताओं ने रक्षा मंत्रालय को पत्र लिखकर भारत को इज़राइल को हथियार न देने की अपील की।
- इस पत्र पर बी. सुधर्शन रेड्डी का भी नाम था।
- सवाल: क्या आतंकियों के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करना “सेक्युलर” विचारधारा है, या यह सीधे-सीधे भारत की विदेश नीति और आतंकवाद-विरोधी स्टैंड को नुकसान पहुँचाना है?
- नक्सल समर्थक लॉबी से करीबी
- पहले ही बताया गया कि साल्वा जुडूम आंदोलन को खत्म करने के फैसले से नक्सलियों को लाभ मिला।
- वामपंथी संगठनों और कार्यकर्ताओं ने हमेशा नक्सलियों को “क्रांतिकारी” बताकर बचाने की कोशिश की है।
- बी. सुधर्शन रेड्डी की लाइन भी कई मौकों पर इन्हीं संगठनों से मेल खाती दिखती है।
- भारत की परंपराओं और धार्मिक भावनाओं से दूरी
- जहाँ अन्य देशों के न्यायाधीश अपने सांस्कृतिक मूल्यों को सम्मान देते हैं, वहीं भारत में कई “सेक्युलर” चेहरे सिर्फ हिंदू परंपराओं पर चोट करने को ही “प्रगतिशीलता” मानते हैं।
- बी. सुधर्शन रेड्डी के कई फैसलों और स्टैंड में यही पैटर्न देखने को मिलता है।
तुलना (Before vs After)
| विचारधारा | पहले (True Secularism) | बाद में (Bias / Communal Secularism) |
|---|---|---|
| राष्ट्रीय सुरक्षा | आतंकवाद के खिलाफ कड़ा | हमास जैसे आतंकी संगठन को अप्रत्यक्ष मदद |
| सामाजिक संतुलन | सबके लिए समान नीति | हिंदू मामलों में सख्ती, दूसरों में नरमी |
| न्यायपालिका का रुख | Neutral (तटस्थ) | एकतरफा (Anti-Hindu, Pro-Left) |
सातों कारणों को देखने के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि बी. सुधर्शन रेड्डी की विचारधारा को “सेक्युलर” कहना केवल एक राजनीतिक जुमला है।
असल में यह विचारधारा:
- एंटी-हिंदू (Anti-Hindu)
- नक्सल समर्थक (Pro-Naxal)
- और वामपंथी–भारत विरोधी (Leftist–Anti-India) झुकाव से भरी हुई है।
👉 यही असली चेहरा है, जिसे आम जनता तक पहुँचाना ज़रूरी है।
