भारतीय इतिहास में औरंगजेब का शासन (1658–1707) सबसे अधिक विवादित और कुख्यात काल माना जाता है। जहाँ उसके पूर्वज मुग़ल शासक अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ धार्मिक सहिष्णुता, कला-संस्कृति और स्थापत्य के लिए याद किए जाते हैं, वहीं औरंगजेब को उसकी कट्टर नीतियों और निर्दयी अत्याचारों के लिए याद किया जाता है।

औरंगजेब को अक्सर एक निर्दयी हत्यारा (Ruthless Killer) और धार्मिक असहिष्णु शासक के रूप में देखा जाता है। उसने सत्ता पाने के लिए अपने ही भाइयों को मौत के घाट उतार दिया, अपने पिता शाहजहाँ को कैद कर दिया और फिर पूरे शासनकाल में हिन्दुओं पर जुल्म, मंदिरों का विध्वंस और जजिया कर जैसे कदम उठाए।
इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने लिखा है कि औरंगजेब के शासन की नीतियाँ न केवल हिन्दुओं बल्कि पूरे मुग़ल साम्राज्य के पतन की वजह बनीं। उसके शासनकाल में लगातार युद्ध, करों का बोझ और धार्मिक भेदभाव ने समाज को बाँट दिया।
औरंगजेब का शासन केवल ताजमहल या भव्य इमारतों से नहीं, बल्कि मंदिरों की तबाही, करों की कठोरता और निर्दोष जनता पर हुए अत्याचारों से पहचाना जाता है। यही कारण है कि आधुनिक इतिहास में उसे एक ऐसा शासक माना जाता है जिसने भारत की सांस्कृतिक धरोहर को अपूरणीय क्षति पहुँचाई और हिन्दू समाज को गहरी चोट दी।
🟢 औरंगजेब का प्रारंभिक जीवन और सत्ता का संघर्ष
मुग़ल साम्राज्य के इतिहास में औरंगजेब का जन्म 3 नवम्बर 1618 को दक्खन के दाहोद (गुजरात) में हुआ था। वह शाहजहाँ और मुमताज़ महल का तीसरा पुत्र था। बचपन से ही औरंगजेब धार्मिक दृष्टि से कट्टर और महत्वाकांक्षी स्वभाव का था। जहाँ उसके बड़े भाई दारा शिकोह उदार विचारधारा और हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे, वहीं औरंगजेब ने इस्लामी कट्टरपंथ और कठोर जीवनशैली को अपनाया।
सत्ता के लिए खूनी संघर्ष
शाहजहाँ के चारों बेटों – दारा शिकोह, शुजा, मुराद और औरंगजेब – के बीच साम्राज्य की गद्दी के लिए भयंकर संघर्ष हुआ। दारा शिकोह, जो शाहजहाँ का प्रिय पुत्र था, साम्राज्य का उत्तराधिकारी माना जा रहा था। लेकिन औरंगजेब ने सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जाने की ठानी।
1658 में उसने समरगढ़ की लड़ाई में दारा शिकोह को हराकर दिल्ली की गद्दी पर कब्ज़ा कर लिया। बाद में दारा को पकड़कर इस्लामी अदालत में “काफ़िर” घोषित कराया गया और मौत के घाट उतार दिया गया। इसी प्रकार मुराद और शुजा को भी रास्ते से हटा दिया गया।
इतिहासकार लिखते हैं कि औरंगजेब ने अपने ही पिता शाहजहाँ को भी कैद कर आगरा किले में बंद कर दिया, जहाँ उसकी मृत्यु तक उसने कैदी जीवन जिया। यह घटना दर्शाती है कि औरंगजेब सत्ता के लिए कितना निर्दयी और निर्मम था।
कट्टर नीतियों की शुरुआत
गद्दी पर बैठते ही औरंगजेब ने अपने शासन की दिशा साफ़ कर दी। उसने दरबार से संगीत, नृत्य और शराब जैसी गतिविधियों पर रोक लगा दी। कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के बजाय वह खुद को “ज़ाहिद” (धार्मिक संत) के रूप में प्रस्तुत करने लगा।
औरंगजेब ने इस्लामी कानून शरीयत (Sharia) को शासन का आधार बनाया और उलेमा (धार्मिक मौलवियों) को दरबार में विशेष स्थान दिया। यहीं से उसकी नीतियाँ हिन्दुओं के खिलाफ और अधिक कठोर होती चली गईं।
सत्ता का प्रभाव और भविष्य का संकेत
शासन की शुरुआत से ही औरंगजेब ने यह दिखा दिया था कि उसका साम्राज्य उसके पूर्वजों से बिल्कुल अलग होगा। अकबर और जहाँगीर की तरह वह धार्मिक सहिष्णुता में विश्वास नहीं करता था। बल्कि उसने शासन को धार्मिक युद्ध (Jihad) और कठोर कानूनों का माध्यम बना दिया।
यही वजह थी कि औरंगजेब का शासन शुरू से ही रक्तपात, षड्यंत्र और धार्मिक असहिष्णुता से जुड़ा रहा। सत्ता की कुर्सी पाने के लिए उसने परिवार का खून बहाया और साम्राज्य पर बैठने के बाद उसने हिन्दू समाज को अपना सबसे बड़ा निशाना बनाया।
🟢 आर्थिक लूट और भारत की संपत्ति का विनाश
इतिहास गवाह है कि औरंगजेब का शासन केवल धार्मिक कट्टरता के लिए ही नहीं, बल्कि भारत की अपार धन-संपत्ति को लूटने और बर्बाद करने के लिए भी बदनाम है। जहाँ अकबर और शाहजहाँ के समय में भारत दुनिया की सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता था, वहीं औरंगजेब की नीतियों और लगातार युद्धों ने खजाने को खाली कर दिया।
लगातार युद्ध और साम्राज्य का खजाना
औरंगजेब ने अपने शासनकाल का बड़ा हिस्सा दक्खन (दक्षिण भारत) में युद्धों में बर्बाद किया। बीजापुर और गोलकुंडा जैसे सम्पन्न राज्य उसकी लूट का मुख्य निशाना बने।
- 1687 में गोलकुंडा पर कब्ज़े के बाद उसने वहाँ के हीरे-जवाहरात और सोने-चाँदी को दिल्ली भेजा।
- मीर जुम्ला के नेतृत्व में असम और बंगाल अभियानों में मंदिरों और नगरों को लूटा गया।
- दक्षिण भारत के अभियानों के कारण साम्राज्य के खजाने पर इतना बोझ पड़ा कि अंत में सेना को वेतन तक देना मुश्किल हो गया।
इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब की अंधाधुंध युद्ध नीति ने मुग़ल साम्राज्य की आर्थिक नींव हिला दी।
करों का बोझ और जजिया
1679 में औरंगजेब ने जजिया कर (Jizya Tax) फिर से लागू किया, जिसे अकबर ने समाप्त कर दिया था। यह कर विशेष रूप से हिन्दुओं पर लगाया गया, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर गहरा असर पड़ा।
- अमीर-गरीब सभी हिन्दुओं को यह कर चुकाना पड़ता था।
- जो हिन्दू कर नहीं दे पाते, उन्हें अपमानित किया जाता या मजबूरन इस्लाम स्वीकार करने को कहा जाता।
इसके अलावा भूमि कर (Land Revenue) में भी वृद्धि की गई। किसानों और व्यापारियों पर अतिरिक्त बोझ डाला गया, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था टूटने लगी।
मंदिरों और शैक्षिक संस्थानों की लूट
औरंगजेब का शासन मंदिरों की संपत्ति को निशाना बनाने के लिए कुख्यात रहा।
- बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कर वहाँ की संपत्ति लूटी गई।
- मंदिरों के दानपात्र, सोने-चाँदी की मूर्तियाँ और जमीनें जब्त कर ली गईं।
- कई प्राचीन गुरुकुल (Traditional Schools) और संस्कृत पाठशालाएँ बंद कर दी गईं, जिससे हिन्दू शिक्षा प्रणाली को गहरी चोट पहुँची।
कला और संस्कृति पर प्रतिबंध
औरंगजेब ने केवल आर्थिक लूट ही नहीं की, बल्कि कला और संस्कृति को भी आर्थिक दृष्टि से बर्बाद किया। उसने दरबार से संगीतकारों और नर्तकों को निकाल दिया। इसके परिणामस्वरूप सैकड़ों कलाकार बेरोज़गार हो गए। यहाँ तक कि उसने दरबार में संगीत को “हराम” घोषित कर दिया और कहा जाता है कि खुद संगीतकारों ने विरोध स्वरूप उसके सामने “ताबूत” में संगीत रखकर प्रस्तुत किया।
आर्थिक गिरावट के परिणाम
- गाँव-गाँव में किसान कर्ज़ में डूब गए।
- व्यापारियों और शिल्पकारों की आजीविका छिन गई।
- लगातार युद्धों और करों के बोझ से जनता त्राहि-त्राहि करने लगी।
- मुग़ल साम्राज्य, जो कभी “सोने की चिड़िया” कहलाता था, धीरे-धीरे पतन की ओर बढ़ने लगा।
इतिहासकार सतीश चंद्र ने लिखा है कि औरंगजेब की युद्धप्रिय और कट्टर आर्थिक नीतियों ने साम्राज्य को दिवालिया बना दिया और जनता को भुखमरी की कगार पर पहुँचा दिया।
🟢 हिन्दुओं पर अत्याचार और जजिया कर
अगर कोई कारण है जिसके चलते औरंगजेब का शासन भारतीय इतिहास में सबसे अधिक बदनाम है, तो वह है उसका हिन्दुओं पर अत्याचार। औरंगजेब की नीतियाँ न केवल धार्मिक रूप से पक्षपाती थीं, बल्कि उन्होंने हिन्दू समाज को आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से भी तोड़ा।
जजिया कर की वापसी
अकबर ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के लिए जजिया कर समाप्त कर दिया था। लेकिन औरंगजेब ने 1679 में इसे पुनः लागू कर दिया।
- यह कर केवल ग़ैर-मुस्लिमों (Non-Muslims) पर लगाया गया।
- अमीर से लेकर गरीब तक, हर हिन्दू को यह कर देना अनिवार्य था।
- कर न देने पर उन्हें सज़ा मिलती, अपमानित किया जाता या इस्लाम अपनाने का दबाव डाला जाता।
इतिहासकारों के अनुसार, इस कदम का उद्देश्य हिन्दुओं को “दूसरे दर्जे” का नागरिक बनाना था।
धार्मिक भेदभाव
औरंगजेब का शासन हिन्दुओं को दबाने और मुसलमानों को श्रेष्ठ दिखाने के लिए जाना जाता है।
- हिन्दुओं को दरबार और प्रशासनिक पदों से धीरे-धीरे बाहर किया जाने लगा।
- हिन्दुओं के धार्मिक उत्सवों (जैसे होली और दीवाली) पर पाबंदियाँ लगाई गईं।
- कई बार हिन्दू यात्रियों और तीर्थयात्राओं पर विशेष टैक्स लगाया गया।
जबरन धर्मांतरण
औरंगजेब के शासनकाल में जगह-जगह हिन्दुओं पर धर्मांतरण का दबाव बढ़ा।
- जो लोग कर नहीं चुका पाते, उनसे कहा जाता कि वे इस्लाम स्वीकार कर लें।
- सेना और प्रशासन में भी कई बार हिन्दुओं को नौकरी बनाए रखने के लिए धर्म बदलना पड़ता था।
- कश्मीर, बंगाल और दक्खन के अभियानों में जबरन धर्मांतरण की घटनाओं का उल्लेख मिलता है।
सामाजिक अपमान
इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने लिखा है कि औरंगजेब की नीतियों ने हिन्दुओं को सामाजिक रूप से भी अपमानित किया।
- हिन्दुओं को सड़कों पर ऊँची आवाज़ में नमस्ते करने या पूजा-पाठ करने से रोका जाता था।
- मंदिरों की घंटियों और शोभायात्राओं को बंद करने के आदेश दिए जाते।
- कई बार हिन्दू व्यापारियों से ज़बरन वसूली कर उनके धंधे चौपट कर दिए जाते।
परिणाम
इन नीतियों के कारण हिन्दुओं में गहरा असंतोष पैदा हुआ। यही वजह थी कि मराठों, जाटों और राजपूतों ने विद्रोह का बिगुल बजाया।
- मराठा नेता छत्रपति शिवाजी और उनके उत्तराधिकारी लगातार औरंगजेब के खिलाफ लड़े।
- जाटों ने मथुरा और आस-पास के इलाकों में विद्रोह किया।
- राजपूतों ने भी मुग़ल सत्ता के खिलाफ संघर्ष शुरू कर दिया।
इतिहासकार मानते हैं कि हिन्दुओं के प्रति उसकी कठोर नीतियाँ ही आगे चलकर मुग़ल साम्राज्य के पतन का सबसे बड़ा कारण बनीं।
🟢 मंदिर विध्वंस – कितने मंदिर तोड़े गए?
भारतीय इतिहास में औरंगजेब का शासन मंदिरों के विध्वंस और धार्मिक स्थलों पर आक्रमण के लिए कुख्यात है। उसके फरमानों (Farmans) और समकालीन इतिहासकारों के लेखों में दर्ज है कि उसने सैकड़ों मंदिर तोड़े और उनकी जगह मस्जिदें बनवाईं। यह नीति न केवल धार्मिक असहिष्णुता का प्रतीक थी, बल्कि हिन्दुओं को अपमानित करने और उनकी संस्कृति को मिटाने का सुनियोजित प्रयास था।
प्रमुख मंदिरों का विध्वंस
औरंगजेब ने कई बड़े और प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया।
- काशी विश्वनाथ मंदिर (1669): बनारस का यह प्रसिद्ध शिव मंदिर तोड़कर उसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई गई।
- मथुरा का केशवदेव मंदिर (1670): भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर बने मंदिर को ध्वस्त कर उसकी जगह शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया गया।
- सोमनाथ मंदिर: यद्यपि यह मंदिर पहले भी आक्रमण झेल चुका था, लेकिन औरंगजेब ने यहाँ के पुजारियों और श्रद्धालुओं को सताया और मंदिर से जुड़े धन पर कब्ज़ा किया।
- उज्जैन का महाकाल मंदिर: यहाँ भी उसने मूर्तियों को तोड़ने और मंदिर की भूमि जब्त करने के आदेश दिए।
इतिहासकार जदुनाथ सरकार लिखते हैं कि 1669 के बाद औरंगजेब ने पूरे उत्तर भारत में मंदिर तोड़ने का अभियान चलाया।
मंदिरों की संख्या पर मतभेद
मंदिर विध्वंस की संख्या को लेकर अलग-अलग मत मिलते हैं।
- जदुनाथ सरकार के अनुसार, सैकड़ों मंदिर तोड़े गए।
- कुछ आधुनिक इतिहासकार जैसे रिचर्ड ईटन का मानना है कि दस्तावेज़ों में लगभग 15–20 बड़े मंदिरों का ही स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
- लेकिन स्थानीय लोककथाओं और क्षेत्रीय ग्रंथों के अनुसार, सैकड़ों छोटे-बड़े मंदिर इस अभियान में ध्वस्त किए गए।
मंदिरों की संपत्ति की लूट
मंदिर केवल पूजा स्थल ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र भी थे।
- मंदिरों के पास विशाल ज़मीनें और दान की संपत्ति होती थी।
- औरंगजेब ने मंदिरों की इन संपत्तियों को जब्त कर अपने खजाने में डाल दिया।
- सोने-चाँदी की मूर्तियाँ और कीमती धातुओं को पिघलवाकर सेना के लिए हथियार बनाए गए।
धार्मिक असहिष्णुता का प्रतीक
औरंगजेब का शासन मंदिर तोड़ने की वजह से हिन्दुओं के लिए दहशत और अपमान का प्रतीक बन गया। मंदिरों के ध्वंस से:
- हिन्दू समाज की धार्मिक स्वतंत्रता पर गहरी चोट पड़ी।
- सांस्कृतिक और स्थापत्य धरोहर को अपूरणीय नुकसान हुआ।
- जनता में असंतोष और विद्रोह की भावना तेज हुई।
परिणाम
मंदिर विध्वंस की नीति का असर तत्कालीन राजनीति पर भी पड़ा।
- मथुरा और बनारस जैसे पवित्र नगरों में बड़े पैमाने पर विद्रोह हुए।
- जाटों और राजपूतों ने औरंगजेब की नीतियों का खुला विरोध किया।
- मराठों ने इसे अपनी लड़ाई का औचित्य बनाया और हिन्दू स्वराज्य की स्थापना का बिगुल बजाया।
इतिहासकार मानते हैं कि मंदिर विध्वंस और धार्मिक उत्पीड़न ने मुग़ल साम्राज्य को स्थायी दुश्मनी में घेर लिया। यही कारण है कि औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य तेज़ी से ढहने लगा।
🟢 शिवाजी और राजपूतों से संघर्ष
औरंगजेब का शासन केवल हिन्दू प्रजा पर अत्याचार और मंदिरों के विध्वंस तक सीमित नहीं था, बल्कि उसने हिन्दू शासकों और सामंतों के खिलाफ भी कठोर नीतियाँ अपनाईं। विशेष रूप से मराठों के छत्रपति शिवाजी और राजस्थान के राजपूतों के साथ उसके संघर्ष ने मुग़ल साम्राज्य में लगातार युद्ध और अशांति फैलाई।
शिवाजी के साथ संघर्ष
छत्रपति शिवाजी, जिन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना की, औरंगजेब के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द थे।
- 1659 के प्रथम लड़ाई में शिवाजी ने अफजल खान को मार गिराया, जो औरंगजेब का सेनापति था।
- औरंगजेब ने इसे व्यक्तिगत अपमान माना और दक्षिण भारत में मराठा युद्ध अभियान शुरू किया।
- उसने लगातार बड़े सेना भेजकर शिवाजी पर काबू पाने की कोशिश की, लेकिन मराठों की युद्ध रणनीति और स्थानीय समर्थन के कारण सफलता नहीं मिली।
- इतिहास में दर्ज है कि औरंगजेब ने शिवाजी के खिलाफ दक्खन युद्ध में भारी धन और सैनिक खोए, जिससे राज्य का खजाना भी कमजोर हुआ।
राजपूतों से संघर्ष
राजस्थान के राजपूतों ने भी औरंगजेब के अत्याचार का विरोध किया।
- माउंट आबू, चित्तौड़ और जयपुर जैसे किलों में राजपूतों ने मुग़ल सेना का बहादुरी से सामना किया।
- जिन्होंने विद्रोह किया, उनके किले-क़स्बे ध्वस्त कर दिए गए और उनकी संपत्ति जब्त की गई।
- कई राजपूत परिवारों के सदस्य कैद या मार दिए गए।
- इतिहासकार सतीश चंद्र का कहना है कि औरंगजेब की यह नीति केवल सत्ता सुनिश्चित करने के लिए नहीं, बल्कि हिन्दू शासकों को दबाने और मुसलमानों को राजनैतिक श्रेष्ठता दिखाने के लिए थी।
युद्धों का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
औरंगजेब का शासन लगातार युद्धों के कारण आर्थिक दृष्टि से भी असफल रहा।
- मराठा और राजपूतों के विद्रोहों को दबाने में खजाने का भारी नुकसान हुआ।
- जनता पर अतिरिक्त कर और जबरन सैनिक भर्ती का बोझ पड़ा।
- ग्रामीण और शहरी समाज में असंतोष और भय फैल गया।
धार्मिक और राजनीतिक उद्देश्य
औरंगजेब ने इन संघर्षों को धार्मिक उद्देश्य से भी जोड़ा।
- उसने खुद को इस्लामी न्याय और कट्टरपंथ का संरक्षक दिखाया।
- हिन्दू शासकों के खिलाफ अभियान में मंदिरों और धार्मिक स्थलों को निशाना बनाना उसकी नीतियों का हिस्सा था।
- इस तरह उसके शासन का धार्मिक और राजनीतिक दोहरा प्रभाव स्पष्ट हुआ: हिन्दुओं का अपमान और मुग़ल सत्ता का विस्तार।
शिवाजी और राजपूतों के साथ संघर्ष ने दिखा दिया कि औरंगजेब का शासन सिर्फ प्रशासनिक शक्ति के लिए नहीं, बल्कि हिन्दू विरोधी नीतियों और धार्मिक कट्टरता के कारण अत्यधिक निर्दयी था। इस संघर्ष ने न केवल साम्राज्य के संसाधनों को बर्बाद किया बल्कि हिन्दू समाज में विद्रोह और असंतोष की आग भी भड़का दी।
🟢 महिलाओं और समाज पर औरंगजेब की नीतियाँ
औरंगजेब का शासन न केवल हिन्दू पुरुषों और शासकों पर अत्याचार के लिए बदनाम था, बल्कि इसने समाज और महिलाओं के जीवन पर भी गहरा असर डाला। उसका कट्टरपंथी दृष्टिकोण और सख्त इस्लामी कानून (Sharia) महिलाओं के पारंपरिक अधिकारों और सांस्कृतिक स्वतंत्रता पर लगातार प्रहार करता रहा।
महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर प्रभाव
- औरंगजेब ने दरबार में महिलाओं की कला और संगीत में भागीदारी पर रोक लगा दी। तवायफ़ और नर्तकियों को दरबार से बाहर कर दिया गया।
- सामाजिक आयोजनों में महिलाओं की भागीदारी पर पाबंदी लगी, जिससे उनकी सार्वजनिक उपस्थिति और सम्मान कम हुआ।
- शादी और संपत्ति के मामलों में महिलाओं के अधिकारों पर सख्ती के साथ इस्लामी कानून लागू किया गया।
हिन्दू महिलाओं पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव
- मंदिरों के विध्वंस और धार्मिक उत्पीड़न के कारण हिन्दू महिलाओं के लिए पूजा और धार्मिक उत्सवों में भाग लेना मुश्किल हो गया।
- जजिया और अन्य करों के कारण परिवारों का आर्थिक बोझ बढ़ा, जिससे महिलाएँ घरेलू और सामाजिक दबाव में रहने लगीं।
- विद्रोही क्षेत्रों में महिलाओं को सुरक्षा का खतरा भी था। युद्ध और लूट के कारण कई महिलाएँ बेघर या शरणार्थी बन गईं।
शिक्षा और सांस्कृतिक प्रभाव
- गुरुकुल और विद्यालयों पर प्रतिबंध के कारण लड़कियों की शिक्षा पर भी प्रभाव पड़ा।
- सामाजिक तौर पर महिलाएँ अपने पारंपरिक ज्ञान और संस्कार खोने लगीं।
- संगीत और नृत्य जैसे कला रूपों पर रोक से महिलाओं की सांस्कृतिक भागीदारी लगभग समाप्त हो गई।
समाज में डर और असंतोष
औरंगजेब का शासन समाज में डर और भय फैलाने वाला था।
- पुरुषों के समान महिलाओं के जीवन पर भी राजनीतिक और धार्मिक दबाव था।
- जनता के जीवन में धार्मिक कट्टरता के कारण पारिवारिक और सामाजिक संरचना प्रभावित हुई।
- समाज में असंतोष और विद्रोह की भावना महिलाओं के जीवन को भी सीधे प्रभावित करती रही।
हालांकि इतिहास में महिलाओं पर हुए अत्याचार के कुछ घटनात्मक प्रमाण सीमित हैं, फिर भी औरंगजेब का शासन महिलाओं के जीवन और सामाजिक स्थिति के लिए एक कठिन और क्रूर युग था। धार्मिक कट्टरता, सांस्कृतिक प्रतिबंध और युद्धों के परिणामस्वरूप समाज की महिलाओं ने कई पीढ़ियों तक इसके प्रभाव को महसूस किया।
🟢 औरंगजेब बनाम उसके पूर्वज शासक (अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ)
औरंगजेब का शासन अपने पूर्वज मुग़ल शासकों की तुलना में पूरी तरह अलग और कट्टर था। जहाँ अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ ने धार्मिक सहिष्णुता, कला-संस्कृति और स्थापत्य विकास को बढ़ावा दिया, वहीं औरंगजेब ने इसे नकारते हुए कठोर इस्लामी नीतियों और हिंसक उपायों के माध्यम से शासन किया।
अकबर के शासनकाल के साथ तुलना
- अकबर ने जजिया कर को समाप्त कर दिया और हिन्दुओं को शासन में समान अधिकार दिए।
- हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के लिए उसने दीन-ए-इलाही जैसे उदारवादी धार्मिक प्रयोग किए।
- कला, स्थापत्य और संस्कृति के क्षेत्र में अकबर का शासन समृद्ध और शांतिपूर्ण था।
इसके विपरीत, औरंगजेब का शासन पूरी तरह धार्मिक कट्टरता पर आधारित था। उसने जजिया कर वापस लगाया, मंदिरों का विध्वंस करवाया और हिन्दुओं को प्रशासनिक पदों से बाहर किया।
जहाँगीर और शाहजहाँ के शासन के साथ तुलना
- जहाँगीर ने अपने शासनकाल में अकबर की नीति को लगभग बनाए रखा। उसने कला और संगीत को संरक्षण दिया और हिन्दू-मुस्लिम संतुलन बनाए रखा।
- शाहजहाँ भव्य स्थापत्य (जैसे ताजमहल, लाल किला) और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध हुए। उनका शासन भी अकबर की उदार नीति का अनुसरण करता रहा।
औरंगजेब का शासन, इसके विपरीत, युद्धों, करों और धार्मिक उत्पीड़न का प्रतीक बन गया। कला और संस्कृति के संरक्षण में कमी आई, और आर्थिक स्थिति भी कमजोर हुई।
धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से अंतर
- अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ के समय हिन्दू और मुस्लिम समाज के बीच सामंजस्य कायम था।
- औरंगजेब ने कट्टर नीतियों और अत्याचारों के माध्यम से हिन्दू समाज में भय और असंतोष फैलाया।
- मंदिरों का विध्वंस, जजिया कर और सामाजिक प्रतिबंधों ने साम्राज्य के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने को तोड़ दिया।
राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव
- पूर्वजों के शासन में कर और संपत्ति का न्यायपूर्ण वितरण था, जबकि औरंगजेब ने अत्यधिक कर और युद्ध खर्च से खजाने को खाली कर दिया।
- अकबर और शाहजहाँ की नीति से साम्राज्य स्थिर और समृद्ध था; औरंगजेब के समय आर्थिक पतन और विद्रोह बढ़े।
इतिहास स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि औरंगजेब का शासन अपने पूर्वजों के शासन की तुलना में न केवल कठोर और क्रूर था, बल्कि उसने भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक धरोहर को भी भारी नुकसान पहुँचाया। अकबर और शाहजहाँ ने साम्राज्य को मजबूत और समृद्ध बनाया, वहीं औरंगजेब ने उसे भय, विद्रोह और आर्थिक संकट की ओर धकेल दिया।
🟢 इतिहासकारों की दृष्टि से औरंगजेब
भारतीय इतिहास में औरंगजेब का शासन हमेशा विवादों और विरोधाभासों के साथ देखा गया है। इतिहासकारों ने उसे अलग-अलग दृष्टिकोण से समझने की कोशिश की है। कुछ ने उसे कट्टरपंथी और निर्दयी शासक बताया है, जबकि कुछ ने केवल राजनीतिक दृष्टि से रणनीतिक और सक्षम माना है।
निर्दयता और धार्मिक कट्टरता
जदुनाथ सरकार और सतीश चंद्र जैसे इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब अपने शासनकाल में हिन्दुओं पर किये गए अत्याचार, मंदिरों का विध्वंस और जजिया कर के लिए कुख्यात हैं।
- सरकार ने लिखा है कि औरंगजेब ने सत्ता पाने और धार्मिक दृष्टिकोण को लागू करने के लिए अपने ही परिवार का खून बहाया।
- सतीश चंद्र के अनुसार, दक्षिण भारत में युद्धों के दौरान औरंगजेब की नीति ने आर्थिक और सामाजिक स्थिति को प्रभावित किया।
- इतिहासकार मानते हैं कि औरंगजेब ने हिन्दू समाज को कमजोर करके और मुस्लिम सत्ता को सर्वोच्च बनाकर साम्राज्य में धार्मिक असंतुलन पैदा किया।
आर्थिक और प्रशासनिक दृष्टि
कुछ इतिहासकारों ने यह भी माना कि औरंगजेब अपने पूर्वजों की तुलना में सख्त प्रशासनिक नीति अपनाने वाला था।
- उसने करों और खजाने के प्रबंधन में कठोरता दिखाई।
- युद्ध और दक्षिण भारत अभियानों में भारी धन और संसाधन खर्च किए।
- हालांकि प्रशासनिक दृष्टि से सक्षम, परंतु यह नीति साम्राज्य के पतन का कारण बनी।
कला और संस्कृति पर प्रभाव
अकबर और शाहजहाँ की तुलना में, औरंगजेब का शासन कला और संस्कृति के लिए विनाशकारी साबित हुआ।
- संगीत, नृत्य और स्थापत्य को संरक्षण नहीं मिला।
- मंदिरों और गुरुकुलों पर हमले से सांस्कृतिक और शैक्षिक संस्थान प्रभावित हुए।
- इतिहासकार इसे भारतीय संस्कृति के लिए एक नुकसानपूर्ण युग मानते हैं।
आधुनिक दृष्टिकोण
आधुनिक इतिहासकार और समाजशास्त्री यह मानते हैं कि औरंगजेब का शासन धार्मिक कट्टरता और सामाजिक भेदभाव का प्रतीक था।
- हिन्दू समाज में भय, विद्रोह और असंतोष बढ़ा।
- मराठा, जाट और राजपूत विद्रोह इसका प्रत्यक्ष परिणाम थे।
- आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से औरंगजेब ने साम्राज्य की नींव को कमजोर किया।
इतिहासकारों के मतानुसार, औरंगजेब का शासन केवल एक समयावधि नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास में अत्याचार, धार्मिक कट्टरता और सामाजिक असंतुलन का प्रतीक है। उसके शासन ने न केवल हिन्दू समाज को पीड़ा दी, बल्कि मुग़ल साम्राज्य की शक्ति, संस्कृति और आर्थिक स्थिरता को भी गहरी चोट पहुंचाई।
🟢 औरंगजेब का शासन – एक निर्दयी युग
भारतीय इतिहास में औरंगजेब का शासन एक ऐसा काल था जिसने हिन्दू समाज, सांस्कृतिक धरोहर और आर्थिक स्थिति पर गहरी चोट पहुंचाई। अपने पूर्वजों की तुलना में, औरंगजेब ने धार्मिक सहिष्णुता को नकारते हुए कठोर इस्लामी कानूनों और अत्याचारों के माध्यम से शासन किया।
उसने अपने सत्ता संघर्ष के दौरान परिवार के सदस्यों का खून बहाया, हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया, मंदिरों का विध्वंस किया और महिलाओं और समाज पर भी प्रतिबंध लगाए। इसके परिणामस्वरूप समाज में भय, असंतोष और विद्रोह फैल गया। मराठा, जाट और राजपूतों ने उसके अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह किया।
इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब की नीतियों ने मुग़ल साम्राज्य की राजनीतिक और आर्थिक नींव को कमजोर किया। मंदिरों और गुरुकुलों का विनाश, युद्धों के कारण खजाने की क्षति, और धार्मिक असहिष्णुता ने भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना को नुकसान पहुँचाया।
मुख्य निष्कर्ष:
- औरंगजेब का शासन केवल राजनीतिक सत्ता तक सीमित नहीं था; यह हिन्दू समाज और संस्कृति पर भी अत्याचार का प्रतीक था।
- आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से उसका शासन अत्यधिक क्रूर और कट्टर था।
- इतिहास में वह अपने पूर्वजों अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ की उदार नीतियों के विपरीत खड़ा है।
💡 विचारणीय संदेश
औरंगजेब के शासन से हमें यह सीख मिलती है कि सत्ता का अत्यधिक लालच और धार्मिक कट्टरता समाज को कितनी गहरी चोट पहुँचा सकती है। इतिहास हमें याद दिलाता है कि सहिष्णुता, न्याय और समानता ही किसी राष्ट्र की असली ताकत हैं।
🟢 FAQ Section – औरंगजेब का शासन
1. औरंगजेब का शासन क्यों विवादित माना जाता है?
उत्तर: औरंगजेब का शासन धार्मिक कट्टरता, हिन्दुओं पर अत्याचार, जजिया कर, मंदिर विध्वंस और परिवारिक संघर्ष के कारण विवादित माना जाता है। उसने सत्ता और धार्मिक उद्देश्यों के लिए अत्यधिक क्रूर नीतियाँ अपनाईं।
2. औरंगजेब ने हिन्दुओं पर कौन-कौन से अत्याचार किए?
उत्तर: उसने जजिया कर लगाया, मंदिरों का विध्वंस किया, हिन्दुओं को प्रशासनिक पदों से हटाया और धार्मिक उत्सवों पर पाबंदी लगाई। इसके अलावा, कई क्षेत्रीय विद्रोहों में हिन्दू समाज को दंडित किया गया।
3. औरंगजेब ने कितने मंदिर तोड़े?
उत्तर: इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब ने सैकड़ों छोटे-बड़े मंदिरों को ध्वस्त किया। प्रमुख मंदिरों में काशी विश्वनाथ, मथुरा के केशवदेव और सोमनाथ शामिल हैं।
4. औरंगजेब और उसके पूर्वजों में मुख्य अंतर क्या था?
उत्तर: अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ ने धार्मिक सहिष्णुता, कला और संस्कृति को बढ़ावा दिया। जबकि औरंगजेब का शासन कट्टर, हिंसक और हिन्दू विरोधी नीतियों पर आधारित था।
5. क्या औरंगजेब का शासन मुग़ल साम्राज्य के पतन का कारण बना?
उत्तर: हाँ। लगातार युद्ध, आर्थिक बोझ, धार्मिक उत्पीड़न और विद्रोहों के कारण साम्राज्य कमजोर हुआ। इतिहासकार इसे मुग़ल साम्राज्य के पतन की मुख्य वजहों में मानते हैं।
