भारत में GST (Goods and Services Tax) को 2017 में “वन नेशन, वन टैक्स” के सपने के साथ लागू किया गया था, और तब से अब तक GST पर विपक्ष का दोहरा रवैया देखने को मिलता आ रहा है। इसका मकसद था – टैक्स सिस्टम को सरल, पारदर्शी और जनता के लिए सुविधाजनक बनाना। लेकिन शुरुआत से ही विपक्ष (Opposition Parties) इसे जनता को “लूटने वाला टैक्स” कहकर आलोचना करता रहा है।

हर चुनावी मंच पर विपक्षी नेता यही सवाल उठाते हैं –
“GST की दरें इतनी ऊँची क्यों हैं?”
“क्या सरकार जनता से वसूली कर रही है?”
लेकिन जब भी GST दरों को कम करने का प्रस्ताव आता है, वही विपक्ष पीछे हट जाता है और कहता है – “राज्यों का राजस्व घट जाएगा।”
यानी जनता के सामने कुछ और, और GST काउंसिल (GST Council) की बैठकों में बिल्कुल उलट रवैया। यही है – “GST पर विपक्ष का दोहरा रवैया”
पृष्ठभूमि
- GST दरें (Rates): शुरू में 0%, 5%, 12%, 18% और 28% की अलग-अलग श्रेणियां बनीं।
- विपक्ष हमेशा यह कहता रहा कि → “28% स्लैब जनता पर बोझ है, इसे घटाओ।”
- लेकिन जब GST Rationalisation (यानी दरें कम करके संरचना को सरल बनाने) की बात आती है, तो वही विपक्ष कहता है – “राज्य को नुकसान होगा, हमें 5 साल तक Compensation दो।”
यानी,
- बाहर जनता को भड़काना (Incite)
- अंदर जाकर दरें घटाने का विरोध करना (Oppose rate cuts)
- और कभी-कभी दरें बढ़ाने या अतिरिक्त लेवी का समर्थन करना (Support additional levy)
❓क्या आपने कभी सोचा है –
- जब विपक्ष कहता है “GST जनता पर बोझ है”, तो क्यों वही विपक्ष GST दरें घटाने के खिलाफ खड़ा हो जाता है?
- क्यों राज्य सरकारें जनता को राहत देने से ज्यादा अपनी आमदनी की चिंता करती हैं?
इसी लेख में हम आपको 5 बड़े केस स्टडीज़ और सबूतों के जरिए दिखाएंगे कि विपक्ष का असली चेहरा क्या है।
विपक्ष का GST पर असली चेहरा: ऐतिहासिक उदाहरण
- विपक्षी राज्यों का GST दरों में कटौती का विरोध
हाल ही में, आठ विपक्षी शासित राज्यों ने केंद्र सरकार के प्रस्तावित GST दरों में कटौती का विरोध किया है। इन राज्यों का कहना है कि इससे उनकी वार्षिक राजस्व में ₹1.5 से ₹2 लाख करोड़ तक की कमी हो सकती है। - विपक्षी राज्यों का अतिरिक्त लेवी का समर्थन
विपक्षी शासित राज्यों ने यह भी प्रस्तावित किया कि GST दरों में कटौती के बाद, ‘सिन’ और ‘लक्ज़री’ वस्तुओं पर अतिरिक्त लेवी लगाई जाए। - केरल का उदाहरण
केरल के वित्त मंत्री, के.एन. बालगोपाल ने कहा कि राज्य सरकार को GST दरों में कटौती के कारण ₹21,955 करोड़ का नुकसान हुआ है, और इस वर्ष ₹8,000 से ₹10,000 करोड़ की अतिरिक्त कमी का अनुमान है।
विश्लेषण और तुलना
पहलू | जनता के सामने विपक्ष | GST Council / अंदर बैठकों में विपक्ष |
---|---|---|
GST दरों पर बयान | “GST दरें ऊँची हैं, जनता पर बोझ है” | “अगर दरें घटेंगी तो राज्यों का राजस्व कम होगा” |
कटौती का समर्थन | आमतौर पर समर्थन जताते हैं | विरोध करते हैं, Compensation या Additional Levy की मांग करते हैं |
बढ़ाने या Additional Levy | आलोचना करते हैं | सहमति जताते हैं, राजस्व संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक मानते हैं |
राजनीतिक रणनीति | वोट बैंक बनाना | राज्य सरकार के बजट और वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित रखना |
विश्लेषण:
- यह विरोधाभास दर्शाता है कि विपक्ष जनता के लिए सस्ती दरों का समर्थन दिखाता है, लेकिन राजस्व सुरक्षा के लिए कटौती का विरोध करता है।
- विपक्ष राजनीतिक लाभ के लिए भावनाओं को भड़का रहा है, जबकि प्रशासनिक स्तर पर अपनी वित्तीय सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।
केस स्टडी: राज्यों के उदाहरण
- तेलंगाना – अनुमानित राजस्व नुकसान: ₹7,000 करोड़; जनता के सामने: GST कटौती का समर्थन; अंदर बैठक में: Compensation और Additional Levy का प्रस्ताव।
- झारखंड – वार्षिक राजस्व नुकसान: ₹2,000 करोड़; जनता के सामने: दरें घटाओ; अंदर बैठक में: 5 साल तक Compensation की मांग।
- तमिलनाडु – मुख्यमंत्री M.K. Stalin: GST सुधार तभी लाभकारी होंगे जब राज्यों की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित हो; जनता के सामने: दरें घटाओ; अंदर बैठक में: राजस्व सुरक्षा प्राथमिक।
दोहरे रवैये के कारण
- राजनीतिक लाभ: चुनावी मंच पर महंगाई और GST को मुद्दा बनाकर वोट बैंक तैयार करना।
- राजस्व सुरक्षा: राज्य सरकारों के लिए GST सबसे बड़ा आय स्रोत है।
- केंद्र पर दबाव: Compensation या Additional Levy मांगकर केंद्र से अधिक सहायता प्राप्त करना।
- जनता की भावनाओं का प्रबंधन: जनता को लगता है कि विपक्ष उनके हित में खड़ा है, जबकि असलियत अलग होती है।
जनता पर प्रभाव और स्टोरीटेलिंग
- महंगाई की धारणा: विपक्षी बयानबाजी से जनता को लगता है कि GST केवल आम आदमी पर बोझ डालता है।
- संदेह और भ्रम: दरअसल, जब दरें घटाने या Rationalisation की बात आती है, तो विपक्ष पीछे हट जाता है।
- राजनीतिक polarization: वोटर विरोधियों और सरकार के बीच फंसा महसूस करता है।
केरल का उदाहरण:
“विपक्ष लगातार कहता है कि GST हमारी जेब काट रहा है। हम खुश थे कि दरें कम होंगी। लेकिन फिर उसी विपक्ष ने GST Council में कटौती का विरोध किया।”
तेलंगाना का उदाहरण:
राज्य सरकार दरें घटाने का विरोध करती है ताकि ₹7,000 करोड़ का वार्षिक नुकसान न हो।
तुलनात्मक तालिका: जनता की धारणा vs वास्तविक नीति
बिंदु | जनता की धारणा | वास्तविक नीति |
---|---|---|
दरों में कटौती | जनता को राहत मिलेगी | विपक्षी राज्यों ने राजस्व सुरक्षा के लिए विरोध किया |
अतिरिक्त लेवी | जनता पर अतिरिक्त बोझ | राज्य वित्तीय घाटा भरने के लिए सहमत |
राजस्व नुकसान | सरकार की गलती | विपक्ष ने दरों में कटौती के खिलाफ बैठकों में मोर्चा संभाला |
राजनीतिक संदेश | “हम आपके साथ हैं” | वित्तीय स्थिरता बनाए रखना प्राथमिकता |
- M.K. Stalin: “GST सुधार तभी सफल होंगे जब राज्यों की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित हो।”
- के.एन. बालगोपाल: “राज्यों को बिना Compensation के GST दरों में कटौती से भारी नुकसान होगा।”
FAQs
Q1. विपक्ष ने GST दरों में कटौती का विरोध क्यों किया?
A1. विपक्षी शासित राज्यों ने GST दरों में कटौती का विरोध इसलिए किया क्योंकि इससे उनकी वार्षिक राजस्व में भारी कमी हो सकती थी।
Q2. क्या विपक्ष जनता को GST के खिलाफ भड़काता है?
A2. हां, चुनावी और राजनीतिक मंच पर विपक्ष यह संदेश देता है कि GST दरें जनता पर बोझ डाल रही हैं।
Q3. विपक्ष ने कभी GST बढ़ाने या अतिरिक्त लेवी का समर्थन किया?
A3. हां, राज्यों ने Additional Levy या Compensation की मांग की ताकि राजस्व घाटे की भरपाई हो सके।
Q4. जनता इस दोहरे रवैये को कैसे समझ सकती है?
A4. जनता को चुनावी बयानबाजी और नीति निर्णय में अंतर समझना चाहिए।
Q5. क्या यह रवैया केवल कुछ राज्यों तक सीमित है?
A5. नहीं, भारत के 8 प्रमुख विपक्षी शासित राज्यों ने समान रणनीति अपनाई है।
निष्कर्ष
- GST पर विपक्ष का दोहरा रवैया दर्शाता है कि राजनीतिक और वित्तीय प्राथमिकताएं अक्सर अलग होती हैं।
- जनता के सामने विपक्ष सस्ती दरों का समर्थन दिखाता है, जबकि नीति स्तर पर राजस्व सुरक्षा के लिए कटौती का विरोध करता है।
- यह विरोधाभास स्पष्ट करता है कि राजनीति में जनता की भावनाओं को भड़काने और प्रशासनिक स्थिरता बनाए रखने का खेल चलता है।
❗ आप क्या सोचते हैं – क्या विपक्ष का यह दोहरा रवैया जनता को भटका रहा है या सिर्फ राज्यों की वित्तीय सुरक्षा की रणनीति है?
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