Presidential System in India: क्या भारत को राष्ट्रपति प्रणाली की जरूरत है?

राष्ट्रपति भारत (President of India)

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र (Democracy in India) है, जहाँ 1950 से संसदीय प्रणाली (Parliamentary system in India) लागू है। यह व्यवस्था ब्रिटेन के वेस्टमिंस्टर मॉडल (Westminster Model) से प्रेरित है, जिसमें प्रधानमंत्री (Prime Minister) कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख होता है और राष्ट्रपति (President) केवल संवैधानिक प्रमुख।

लेकिन बीते कुछ दशकों में राजनीतिक अस्थिरता, गठबंधन सरकारों की कमजोरी, नीतिगत देरी और बढ़ते व्यक्तिवाद ने एक अहम सवाल उठाया है—क्या अब समय आ गया है कि हम Presidential system in India पर गंभीर चर्चा करें?

Presidential system in India का अर्थ यह है कि जनता सीधे राष्ट्र प्रमुख को चुने और वही कार्यपालिका का भी प्रमुख हो, जैसा कि अमेरिका में होता है। इस व्यवस्था में सरकार को संसद गिरा नहीं सकती और कार्यकाल निश्चित होता है। समर्थकों का कहना है कि इससे राजनीतिक स्थिरता (Political Stability) और कार्यक्षमता (Executive Efficiency) बढ़ेगी, जबकि विरोधियों को डर है कि इससे शक्ति का अत्यधिक केंद्रीकरण (Authoritarianism) हो सकता है।

यह प्रश्न केवल संवैधानिक नहीं है बल्कि भारत के लोकतांत्रिक भविष्य की दिशा तय करने वाला है। इसी कारण इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे:

  • वर्तमान संसदीय प्रणाली की खूबियाँ और कमियाँ,
  • राष्ट्रपति प्रणाली की संरचना,
  • भारत में इसे अपनाने के पक्ष और विपक्ष,
  • ऐतिहासिक व संवैधानिक संदर्भ,
  • और यह कि क्या कोई अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली (Semi-presidential system) भारत के लिए एक संतुलित विकल्प हो सकती है।

🇮🇳 भारत की वर्तमान संसदीय प्रणाली (Parliamentary system in India)

भारत ने स्वतंत्रता के बाद संसदीय प्रणाली (Parliamentary system in India) को अपनाया, जिसे ब्रिटेन के वेस्टमिंस्टर मॉडल (Westminster Model) से प्रेरणा मिली। हमारे संविधान निर्माताओं ने यह प्रणाली इसलिए चुनी क्योंकि यह भारत जैसे विविधता-पूर्ण देश में जवाबदेही (Accountability), प्रतिनिधित्व (Representation) और विकेन्द्रीकरण (Decentralization) सुनिश्चित करती है।

✦ संरचना (Structure)

  1. राष्ट्रपति (President of India):
    संवैधानिक प्रमुख (Ceremonial Head) होते हैं, लेकिन कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास होती है।
  2. प्रधानमंत्री (Prime Minister):
    कार्यपालिका का प्रमुख (Head of Executive) और लोकसभा में बहुमत रखने वाली पार्टी/गठबंधन का नेता।
  3. मंत्रिपरिषद (Council of Ministers):
    प्रधानमंत्री के नेतृत्व में गठित होती है और सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी (Collectively responsible to Parliament) होती है।
  4. संसद (Parliament):
    द्विसदनीय—लोकसभा (Lok Sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha)। यह कानून निर्माण करती है और सरकार को जवाबदेह बनाती है।

✦ प्रमुख विशेषताएँ (Key Features)

  • सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective Responsibility): मंत्रिपरिषद संसद (विशेषकर लोकसभा) के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है।
  • बहुमत आधारित सरकार (Majority-based Government): प्रधानमंत्री केवल तभी पद पर बने रहते हैं जब उन्हें लोकसभा में बहुमत का विश्वास हो।
  • “No Confidence Motion” का प्रावधान: संसद में अविश्वास प्रस्ताव पास होने पर सरकार तुरंत गिर सकती है।
  • द्वैध कार्यपालिका (Dual Executive): राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख, जबकि प्रधानमंत्री वास्तविक प्रमुख।

✦ फायदे (Advantages)

  1. विविधता का प्रतिनिधित्व (Representation of Diversity):
    भारत की भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को संसद में जगह मिलती है।
  2. जवाबदेही (Accountability):
    सरकार हर निर्णय और नीति के लिए संसद और जनता के प्रति उत्तरदायी रहती है।
  3. लचीलापन (Flexibility):
    यदि सरकार जनता का विश्वास खो दे, तो उसे तुरंत बदला जा सकता है—इससे लोकतंत्र जीवंत रहता है।
  4. चर्चा और सहमति (Deliberation and Consensus):
    संसद में नीतियों पर खुली बहस होती है, जिससे निर्णय लोकतांत्रिक प्रक्रिया से गुजरते हैं।

✦ चुनौतियाँ (Challenges)

  1. गठबंधन अस्थिरता (Coalition Instability):
    विशेषकर 1989 से 2014 तक भारत में कई बार गठबंधन सरकारें बनीं, जिन्हें टिकाना मुश्किल रहा।
  2. राजनीतिक सौदेबाज़ी (Political Bargaining):
    समर्थन बनाए रखने के लिए अक्सर मंत्रिमंडल पदों और संसाधनों का वितरण सौदेबाज़ी से होता है।
  3. नीति निर्माण में देरी (Policy Paralysis):
    कई बार विपक्ष या गठबंधन सहयोगियों के दबाव में बड़े सुधार रुके रहते हैं।
  4. व्यक्तिवाद और भ्रष्टाचार (Personality Cult & Corruption):
    संसदीय प्रणाली में पार्टी-आधारित राजनीति के कारण व्यक्तिवाद और सत्ता में बने रहने के लिए भ्रष्टाचार की घटनाएँ बढ़ती हैं।

🧭 राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential System) क्या है?

Diagram comparing Presidential system and Parliamentary system in India

राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential system) एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें राष्ट्रपति (President) ही देश का राज्य प्रमुख (Head of State) और कार्यपालिका प्रमुख (Head of Government) दोनों होता है। इसे मुख्य रूप से अमेरिका में देखा जाता है, लेकिन कई देशों में इसका स्वरूप अलग-अलग होता है। भारत में इस प्रणाली पर विचार करने का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक स्थिरता और निर्णय लेने की तीव्रता बढ़ाना है।

✦ संरचना और विशेषताएँ (Structure & Features)

  1. सशक्त राष्ट्रपति (Strong President):
    राष्ट्रपति कार्यपालिका का पूर्ण नियंत्रण रखते हैं और सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं।
  2. अलग-अलग कार्यपालिका और विधायिका (Separation of Executive & Legislature):
    राष्ट्रपति संसद (Parliament) के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। इसका अर्थ है कि सरकार संसद द्वारा गिराई नहीं जा सकती।
  3. निश्चित कार्यकाल (Fixed Term):
    राष्ट्रपति का कार्यकाल आमतौर पर 4–5 वर्ष का होता है और उसे निर्दिष्ट अवधि के अंत तक पद से हटाया नहीं जा सकता।
  4. मंत्रिमंडल का चयन (Cabinet Appointment):
    राष्ट्रपति अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों का चयन स्वतंत्र रूप से करते हैं। ये मंत्री राष्ट्रपति के प्रति जिम्मेदार होते हैं, न कि संसद के प्रति।
  5. निरंकुशता का खतरा (Risk of Authoritarianism):
    यदि संस्थागत संतुलन कमजोर हो, तो सत्ता का केंद्रीकरण (Power Centralization) हो सकता है।

✦ फायदे (Advantages of Presidential System)

  1. राजनीतिक स्थिरता (Political Stability):
    राष्ट्रपति निश्चित कार्यकाल के कारण सरकार अचानक नहीं गिरती।
  2. निर्णय लेने में तीव्रता (Decision-making Efficiency):
    राष्ट्रपति पार्टी या गठबंधन की राजनीति से बंधे नहीं होते, इसलिए नीति निर्माण तेज़ होता है।
  3. सीधा जनादेश (Direct Mandate):
    जनता सीधे राष्ट्रपति चुनती है, जिससे लोकतंत्र में नागरिकों की भागीदारी बढ़ती है।
  4. राष्ट्रीय एकता (National Unity):
    पूरे देश द्वारा चुने गए राष्ट्रपति में एकजुटता की भावना उत्पन्न होती है, क्षेत्रीय राजनीति की संकीर्णता कम होती है।
  5. जवाबदेही स्पष्ट होती है (Clear Accountability):
    कार्यपालिका पर केवल राष्ट्रपति जिम्मेदार होते हैं, जिससे जिम्मेदारी तय करना आसान होता है।

✦ विपक्ष और चुनौतियाँ (Disadvantages & Challenges)

  1. शक्ति का केंद्रीकरण (Concentration of Power):
    राष्ट्रपति और कार्यपालिका का पूर्ण नियंत्रण होने से लोकतंत्र में checks and balances कमजोर हो सकते हैं।
  2. भारतीय विविधता के लिए कठिन (Difficulty in Diverse India):
    भारत में भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता बहुत अधिक है; एक ही नेता के लिए सभी क्षेत्रों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करना कठिन होगा।
  3. संविधान और न्यायपालिका पर दबाव (Pressure on Judiciary & Constitution):
    यदि संसद की शक्ति सीमित होती है, तो न्यायपालिका को सत्ता का संतुलन बनाए रखने की चुनौती बढ़ती है।
  4. संरचनात्मक बदलाव की आवश्यकता (Need for Constitutional Amendments):
    भारत में पूर्ण राष्ट्रपति प्रणाली लागू करने के लिए संविधान में बड़े संशोधन की जरूरत होगी।

🇮🇳 भारत में राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential System in India) की ज़रूरत

भारत में राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential system) अपनाने का विचार केवल संवैधानिक बहस नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक स्थिरता (Political Stability), प्रशासनिक दक्षता (Administrative Efficiency) और लोकतांत्रिक भागीदारी (Democratic Participation) बढ़ाने का सवाल भी है।

✦ भारत में राष्ट्रपति प्रणाली अपनाने के 6 ठोस कारण (6 Reasons to Consider Presidential System in India)

1. राजनीतिक स्थिरता की आवश्यकता (Need for Political Stability) ✅

  • वर्तमान संसदीय प्रणाली (Parliamentary system) में गठबंधन सरकारों (Coalition Governments) का समय-समय पर असफल होना आम है।
  • राष्ट्रपति प्रणाली में निश्चित कार्यकाल (Fixed Term) होने से सरकार अचानक नहीं गिरती।
  • इससे न केवल नीति निर्माण तेज़ होता है, बल्कि दीर्घकालिक योजनाओं का क्रियान्वयन भी स्थिर रहता है।

2. कार्यकारी दक्षता में वृद्धि (Improved Executive Efficiency) ⚡

  • प्रधानमंत्री को अक्सर गठबंधन या पार्टी राजनीति (Party Politics) के कारण समझौते करने पड़ते हैं।
  • राष्ट्रपति प्रणाली में कार्यपालिका (Executive) स्वतंत्र होती है और निर्णय जल्दी और प्रभावी तरीके से लिया जा सकता है।

3. सीधे जनादेश की शक्ति (Direct Mandate from People) 🗳️

  • जनता सीधे राष्ट्रपति को चुनती है।
  • इससे लोकतंत्र में सशक्त नागरिक भागीदारी (Empowered Citizen Participation) बढ़ती है।

4. भ्रष्टाचार में कमी की संभावना (Potential Reduction in Corruption) 💼

  • संसदीय प्रणाली में अक्सर समर्थन जुटाने के लिए सौदेबाज़ी होती है, जिससे भ्रष्टाचार बढ़ सकता है।
  • राष्ट्रपति प्रणाली में निर्णय लेने की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और केंद्रीकृत होती है।

5. प्रशासनिक जवाबदेही (Administrative Accountability) 🏛️

  • सभी कार्यकारी निर्णयों की जवाबदेही केवल राष्ट्रपति के पास होती है।
  • इससे सिस्टम में स्पष्ट जवाबदेही (Clear Accountability) आती है और प्रशासनिक कार्य में सुधार होता है।

6. राष्ट्रीय एकता और नेतृत्व (National Unity & Leadership) 🌏

  • पूरे देश द्वारा चुने गए राष्ट्रपति में एकजुटता (Unity) की भावना उत्पन्न होती है।
  • यह क्षेत्रीय और भाषाई राजनीति की संकीर्णता को कम करता है।

✦ विशेषज्ञों की राय (Expert Opinions)

  1. रामचंद्र गुहा (Historian):
    “भारत में व्यक्ति पूजा की राजनीति ने संसदीय प्रणाली को कमजोर किया है। राष्ट्रपति प्रणाली इससे निपटने का विकल्प हो सकती है।”
  2. शशि थरूर (MP):
    “राष्ट्रपति प्रणाली सत्ता का केंद्रीकरण करती है। यदि संतुलन नहीं रखा गया, तो लोकतंत्र कमजोर हो सकता है।”
  3. अरुण शौरी (Former Minister):
    “अब समय आ गया है कि हम अपनी व्यवस्था की पुनर्रचना करें और कुछ लोकतांत्रिक सुधार करें।”

✦ जनता की सोच और ट्रेंड्स (Public Opinion & Trends)

  • सोशल मीडिया और सर्वेक्षणों में लोग सशक्त और स्थायी नेतृत्व (Strong & Stable Leadership) की मांग कर रहे हैं।
  • विशेषकर युवा वर्ग (Youth) में सीधे चुने गए राष्ट्रपति (Directly Elected President) के प्रति आकर्षण बढ़ा है।

⚠️ राष्ट्रपति प्रणाली के खतरे और विपक्षी तर्क (Disadvantages & Risks of Presidential System in India)

भारत में राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential system in India) अपनाने के पक्ष में बहुत तर्क हैं, लेकिन इसके कई खतरे और विपक्षी दृष्टिकोण भी हैं जिन्हें गंभीरता से देखना ज़रूरी है।

1. निरंकुशता का खतरा (Risk of Authoritarianism) ⚖️

  • राष्ट्रपति प्रणाली में कार्यपालिका (Executive) और विधायिका (Legislature) अलग होती हैं।
  • यदि शक्तियाँ संतुलित न हों, तो शक्ति का केंद्रीकरण (Power Concentration) हो सकता है।
  • इससे लोकतंत्र कमजोर हो सकता है और देश में निरंकुश नेतृत्व (Autocratic Leadership) का खतरा बढ़ सकता है।

2. भारतीय विविधता के खिलाफ (Against Indian Diversity) 🌏

  • भारत बहुभाषी, बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक देश है।
  • एक ही व्यक्ति को पूरे देश के लिए उपयुक्त मानना कठिन है।
  • राष्ट्रपति प्रणाली में क्षेत्रीय और सामाजिक प्रतिनिधित्व (Regional & Social Representation) कम हो सकता है।

3. संसदीय प्रणाली की जड़ों को तोड़ना (Breaking Roots of Parliamentary System) 🌱

  • भारत की राजनीतिक संस्कृति और चुनाव प्रणाली (Election System) दशकों से संसदीय प्रणाली के साथ जुड़ी है।
  • अचानक परिवर्तन से राजनीतिक अस्थिरता (Political Disruption) और सामाजिक विरोध (Social Opposition) पैदा हो सकता है।

4. शक्तियों का असंतुलन (Imbalance of Powers) ⚖️

  • यदि न्यायपालिका (Judiciary) और संसद (Parliament) की भूमिका कमजोर होती है, तो राष्ट्रपति की शक्ति (President’s Power) बढ़ सकती है।
  • इससे checks and balances का मूल सिद्धांत कमजोर हो सकता है।

5. गठबंधन और बहुमत की राजनीति से दूरी (Distance from Coalition Politics) 🏛️

  • गठबंधन राजनीति में विविध विचार और क्षेत्रीय हित शामिल होते हैं।
  • राष्ट्रपति प्रणाली में यह विविधता अक्सर प्रभावित होती है, जिससे छोटे राज्यों और समुदायों की आवाज़ दब सकती है।

6. बदलाव की सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियाँ (Social & Political Challenges of Change) ⚠️

  • बड़े संवैधानिक बदलाव (Constitutional Amendments) के लिए सामाजिक स्वीकृति (Social Acceptance) और राजनीतिक इच्छाशक्ति (Political Will) दोनों आवश्यक हैं।
  • भारत में इतनी व्यापक स्वीकृति जुटाना मुश्किल हो सकता है।

✦ विशेषज्ञों की चेतावनी (Expert Warnings)

  1. शशि थरूर (MP):
    “राष्ट्रपति प्रणाली सत्ता के केंद्रीकरण की ओर ले जाती है। यदि checks and balances न हों, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है।”
  2. अन्य विश्लेषक:
    “भारतीय सामाजिक विविधता और क्षेत्रीय राजनीति को ध्यान में रखते हुए, पूर्ण राष्ट्रपति प्रणाली जोखिमपूर्ण हो सकती है।”

🧪 भारत राष्ट्रपति प्रणाली के लिए कितना तैयार है? (Is India Ready for Presidential System?)

भारत जैसे विशाल और विविध देश में राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential System in India) लागू करना केवल संवैधानिक नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भी चुनौतीपूर्ण है।

1. सामाजिक स्वीकृति (Social Acceptance) 🌏

  • भारत में भाषा, धर्म, जाति और क्षेत्रीय विविधता बहुत बड़ी है।
  • एक ही नेता को पूरे देश के लिए चुनना सभी वर्गों और समुदायों को स्वीकार्य होना चाहिए।
  • बिना व्यापक जनभागीदारी (Public Participation) और सहमति के परिवर्तन संभव नहीं।

2. राजनीतिक इच्छाशक्ति (Political Will) 🏛️

  • संविधान में बदलाव (Amendments) के लिए संसद और राज्य सरकारों की सहमति जरूरी होती है।
  • वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में गठबंधन और क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका अहम है।
  • अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति कमजोर हुई, तो पूर्ण राष्ट्रपति प्रणाली लागू करना मुश्किल है।

3. विकल्प और मध्यवर्ती मॉडल (Alternative & Intermediate Models) 🔄

पूर्ण राष्ट्रपति प्रणाली अपनाने के बजाय भारत के लिए कुछ वैकल्पिक मॉडल सुझाए जा सकते हैं:

(a) अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली (Semi-Presidential System)

  • फ्रांस जैसे देशों में अपनाया गया मॉडल।
  • इसमें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों होते हैं।
  • राष्ट्रपति सीधे जनता द्वारा चुना जाता है, लेकिन प्रधानमंत्री संसदीय बहुमत पर आधारित होता है।
  • इससे स्थिरता और लोकतांत्रिक संतुलन दोनों संभव होते हैं।

(b) प्रधानमंत्री का सीधे चुनाव (Direct PM Election)

  • जनता सीधे प्रधानमंत्री को चुन सकती है, जबकि संसद अपनी पारंपरिक भूमिका निभाती है।
  • इससे कार्यपालिका (Executive) अधिक जिम्मेदार और स्थिर (Stable) बन सकती है।

(c) सुधारित संसदीय प्रणाली (Reformed Parliamentary System)

  • मंत्रियों की योग्यता और जवाबदेही बढ़ाना।
  • प्रशासनिक स्वतंत्रता (Administrative Autonomy) बढ़ाना।
  • न्यायपालिका और संसद की भूमिका को और प्रभावशाली बनाना।

4. विशेषज्ञों की राय (Expert Opinions) 🧠

  1. अरुण शौरी (पूर्व मंत्री):
    “भारत में पूर्ण राष्ट्रपति प्रणाली लागू करने से पहले अर्ध-राष्ट्रपति मॉडल पर गंभीर विचार करना चाहिए।”
  2. राजनीतिक विश्लेषक:
    “स्थिरता और लोकतांत्रिक संतुलन के लिए चुनाव सुधार और प्रशासनिक जवाबदेही पर ध्यान जरूरी है।”

5. जनता की धारणा (Public Opinion) 🗳️

  • हाल के वर्षों के सर्वे और सोशल मीडिया बहस में लोग मजबूत और स्थायी नेतृत्व चाहते हैं।
  • विशेषकर युवाओं में सीधे चुने गए नेता (Directly Elected Leader) की मांग बढ़ रही है।
  • फिर भी, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और विविधता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

🧩 संसदीय बनाम राष्ट्रपति प्रणाली: गहन तुलना (Parliamentary vs Presidential System in India)

भारत में राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential System in India) अपनाने के पक्ष और विपक्ष को समझने के लिए इसे संसदीय प्रणाली (Parliamentary System) से तुलना करना आवश्यक है।

🔹 तुलना तालिका (Comparison Table)

पहलू (Aspect)संसदीय प्रणाली (Parliamentary System)राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential System)
कार्यकारी प्रमुख (Executive Head)प्रधानमंत्री (Prime Minister)राष्ट्रपति (President)
चयन प्रक्रिया (Selection Process)सांसदों द्वारा (Elected by MPs)सीधे जनता द्वारा (Directly elected by people)
कार्यकाल (Term)अनिश्चित, बहुमत पर निर्भर (Depends on majority)निश्चित, आमतौर पर 5 वर्ष (Fixed, usually 4-5 years)
सरकार गिरने की संभावना (Government Collapse Risk)अधिक (High)बहुत कम (Very low)
जवाबदेही (Accountability)संसद के प्रति (To Parliament)जनता/संविधान के प्रति (To People & Constitution)
शक्ति का संतुलन (Power Balance)विभाजित (Divided)केंद्रित (Centralized)
स्थिरता (Stability)गठबंधन राजनीति में कमजोर (Weak in coalition politics)निश्चित कार्यकाल से मजबूत (Strong due to fixed term)
निरंकुशता का खतरा (Risk of Authoritarianism)कम (Low)अधिक (Higher risk)
क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व (Regional Representation)बेहतर (Better)सीमित (Limited)

🔹 विश्लेषण (Analysis)

  1. राजनीतिक स्थिरता (Political Stability)
  • संसदीय प्रणाली में गठबंधन सरकारें अक्सर अस्थिर होती हैं।
  • राष्ट्रपति प्रणाली में निर्धारित कार्यकाल इसे स्थिर बनाता है।
  1. कार्यकारी स्वतंत्रता (Executive Autonomy)
  • संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री को पार्टी और गठबंधन की राजनीति से समझौता करना पड़ता है।
  • राष्ट्रपति प्रणाली में निर्णय लेने की स्वतंत्रता अधिक होती है।
  1. लोकतांत्रिक भागीदारी (Democratic Participation)
  • राष्ट्रपति प्रणाली में जनता सीधे राष्ट्र प्रमुख चुनती है।
  • संसदीय प्रणाली में जनता का प्रत्यक्ष चयन केवल सांसदों के माध्यम से होता है।
  1. क्षेत्रीय और सामाजिक प्रतिनिधित्व (Regional & Social Representation)
  • संसदीय प्रणाली में राज्यों और क्षेत्रीय दलों की भूमिका अधिक होती है।
  • राष्ट्रपति प्रणाली में राष्ट्रीय नेता अधिक केंद्रीकृत होते हैं।
  1. शक्ति संतुलन और checks & balances
  • संसदीय प्रणाली में शक्ति का वितरण (Executive, Legislature, Judiciary) संतुलित रहता है।
  • राष्ट्रपति प्रणाली में शक्ति केंद्रीकृत हो सकती है, जिससे निरंकुशता (Authoritarianism) का खतरा बढ़ जाता है।

🔹 निष्कर्ष (Conclusion)

  • संसदीय प्रणाली भारत की सामाजिक और क्षेत्रीय विविधता को बेहतर ढंग से संभालती है।
  • राष्ट्रपति प्रणाली राजनीतिक स्थिरता और सीधे जनादेश के लिए लाभकारी हो सकती है, लेकिन इसमें निरंकुशता और केंद्रीकरण के खतरे भी हैं।
  • भारत के लिए पूर्ण राष्ट्रपति प्रणाली से पहले अर्ध-राष्ट्रपति मॉडल या सुधारित संसदीय प्रणाली अधिक व्यवहारिक विकल्प हैं।

📜 संविधान निर्माताओं की सोच और ऐतिहासिक संदर्भ (Constitution Makers & Historical Context)

भारत में संसदीय प्रणाली (Parliamentary System) अपनाने का निर्णय संविधान सभा (Constituent Assembly) में बड़े विवेक और दृष्टिकोण के साथ लिया गया था। यह केवल राजनीतिक चयन नहीं, बल्कि भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक परिस्थितियों का परिणाम था।

🔹 प्रमुख संविधान निर्माताओं की सोच (Key Constitution Makers’ Vision)

  1. डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. B.R. Ambedkar)
  • उन्होंने विकेंद्रीकरण (Decentralization) और शक्तियों के संतुलन (Separation of Powers) को प्राथमिकता दी।
  • उनका मानना था कि भारत में एक मजबूत केंद्रीय राष्ट्रपति से निरंकुशता का खतरा होगा।
  1. पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru)
  • उन्होंने संसदीय प्रणाली को अपनाने में समर्थन दिया क्योंकि यह लोकतांत्रिक अनुभव को बढ़ाता है और राजनीतिक भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
  • उनका दृष्टिकोण था कि भारत की भाषाई, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय विविधता को संभालने के लिए संसदीय प्रणाली बेहतर है।
  1. सुभाष चंद्र बोस और अन्य विचारक (Other Leaders)
  • वे भी कार्यपालिका और संसद के बीच संतुलन (Balance of Power) बनाए रखने के पक्षधर थे।
  • उनका तर्क था कि सीधे चुने गए राष्ट्रपति में शक्ति का केंद्रीकरण लोकतंत्र के लिए खतरा है।

🔹 ऐतिहासिक संदर्भ (Historical Context)

  • ब्रिटिश शासन के अनुभव (British Colonial Experience)
  • भारत ने ब्रिटिश वेस्टमिंस्टर मॉडल (Westminster Model) का अनुभव देखा।
  • संसदीय प्रणाली के माध्यम से भारत ने लोकतंत्र, बहुलवाद और जवाबदेही (Accountability) की नींव रखी।
  • स्वतंत्रता के समय राजनीतिक परिस्थिति (Political Situation at Independence)
  • भारत एक बहु-सांस्कृतिक और बहु-भाषाई देश था।
  • विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में समान प्रतिनिधित्व देने के लिए संसदीय प्रणाली अधिक उपयुक्त थी।
  • गठबंधन और क्षेत्रीय दलों का उदय (Emergence of Coalition & Regional Parties)
  • 1980s और 1990s में, भारत में गठबंधन सरकारें सामान्य हुईं।
  • इसने संसदीय प्रणाली की स्थिरता पर प्रश्न उठाया, और राष्ट्रपति प्रणाली की संभावना पर बहस शुरू हुई।

🔹 संविधान निर्माताओं के तर्कों का सारांश (Summary of Framers’ Argument)

  1. लोकतांत्रिक अनुभव की कमी → संसदीय प्रणाली ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत किया।
  2. विविधता और विकेंद्रीकरण → राज्यों और क्षेत्रीय दलों को शक्ति देने में मदद।
  3. निरंकुश नेतृत्व से बचाव → सीधे चुने गए राष्ट्रपति में शक्ति केंद्रीकरण का खतरा।
  4. संसदीय जवाबदेही (Parliamentary Accountability) → सरकार संसद के प्रति जवाबदेह होती है।

🧠 राष्ट्रपति प्रणाली अपनाने पर विशेषज्ञों की राय और विपक्षी तर्क (Experts’ Opinion & Opposition Arguments)

भारत में राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential System in India) पर बहस केवल राजनीतिक ही नहीं, बल्कि वैचारिक और संवैधानिक भी है। इस पर विशेषज्ञों की राय अलग-अलग हैं और इसके पक्ष और विपक्ष दोनों के मजबूत तर्क मौजूद हैं।

🔹 विशेषज्ञों की राय (Experts’ Opinion)

  1. रामचंद्र गुहा (Ramachandra Guha) – इतिहासकार
  • उनका कहना है कि भारत में व्यक्ति पूजा (Personality Politics) की राजनीति ने संसदीय प्रणाली को कमजोर किया है।
  • उन्होंने सुझाव दिया कि सशक्त और सीधे चुने हुए राष्ट्रपति से स्थिर नेतृत्व मिल सकता है।
  1. अरुण शौरी (Arun Shourie) – पूर्व मंत्री
  • वे मानते हैं कि भारत की जटिल राजनीतिक परिस्थितियों में राष्ट्रपति प्रणाली बेहतर प्रशासन और निर्णय लेने की क्षमता दे सकती है।
  1. शशि थरूर (Shashi Tharoor) – सांसद और लेखक
  • उनका तर्क है कि राष्ट्रपति प्रणाली सत्ता का केंद्रीकरण (Centralization of Power) बढ़ा सकती है।
  • इससे लोकतांत्रिक संतुलन (Democratic Balance) खतरे में पड़ सकता है।
  1. अन्य विशेषज्ञ (Other Analysts)
  • कई लोग मानते हैं कि अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली (Semi-Presidential System) अपनाना ज्यादा सुरक्षित विकल्प है।
  • इससे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों की भूमिकाएँ संतुलित रह सकती हैं।

🔹 विपक्षी तर्क (Opposition Arguments)

  1. निरंकुशता का खतरा (Risk of Autocracy)
  • राष्ट्रपति को सीधे जनता चुनती है और संसद पर निर्भर नहीं होता।
  • यह शक्ति के केंद्रीकरण (Centralization of Power) का कारण बन सकता है।
  1. भारतीय विविधता के खिलाफ (Against Indian Diversity)
  • भारत एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश है।
  • पूरे देश के लिए एक नेता चुनना हमेशा संभव नहीं।
  1. संसदीय प्रणाली की जड़ों को तोड़ना (Breaking Parliamentary Roots)
  • भारत की राजनीतिक संस्कृति, चुनाव प्रणाली और सामाजिक संरचना दशकों से संसदीय प्रणाली के साथ जुड़ी हुई है।
  1. शक्तियों का असंतुलन (Power Imbalance)
  • यदि न्यायपालिका और संसद की भूमिका कमजोर हो जाए, तो राष्ट्रपति की शक्ति बेलगाम (Unchecked) हो सकती है।

🔹 निष्कर्ष (Conclusion of Expert Opinions)

  • राष्ट्रपति प्रणाली अपनाने के फायदे हैं:
  • राजनीतिक स्थिरता (Political Stability)
  • प्रशासनिक दक्षता (Administrative Efficiency)
  • सीधे जनादेश (Direct Mandate)
  • राष्ट्रपति प्रणाली के नुकसान हैं:
  • शक्ति का केंद्रीकरण (Power Centralization)
  • लोकतंत्र के संतुलन पर असर
  • विविधता में असंतुलन
  • समाधान:
  • पूर्ण राष्ट्रपति प्रणाली की बजाय अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली (Semi-Presidential System) अपनाना, जिससे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की भूमिकाएँ संतुलित रहें।

⚖️ राष्ट्रपति प्रणाली के फायदे और नुकसान भारत के संदर्भ में (Pros & Cons of Presidential System in India)

भारत में राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential System in India) अपनाने पर बहस सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक, प्रशासनिक और संवैधानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

🔹 राष्ट्रपति प्रणाली के फायदे (Pros of Presidential System)

  1. राजनीतिक स्थिरता (Political Stability)
  • राष्ट्रपति का कार्यकाल तय होता है, जिससे गठबंधन सरकारों की तरह बार-बार गिरने का डर नहीं रहता
  • उदाहरण: अमेरिका में राष्ट्रपति का 4 साल का कार्यकाल तय होता है और सरकार गिरती नहीं।
  1. कार्यकारी दक्षता (Administrative Efficiency)
  • कार्यपालिका स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकती है।
  • प्रधानमंत्री/कुल मंत्रियों को संसदीय राजनीति के दबाव में नहीं रहना पड़ता।
  1. सीधे जनादेश (Direct Mandate)
  • राष्ट्रपति को सीधे जनता चुनती है।
  • इससे नागरिकों की भागीदारी (Citizen Participation) बढ़ती है और लोकतंत्र मजबूत होता है।
  1. प्रशासनिक जवाबदेही (Administrative Accountability)
  • पूरे प्रशासन की जिम्मेदारी एक व्यक्ति पर केंद्रित होती है।
  • भ्रष्टाचार या निर्णयों की जवाबदेही तय करना सरल होता है।
  1. राष्ट्रीय एकता और नेतृत्व (National Unity and Leadership)
  • पूरे देश द्वारा चुने गए नेता में एकजुटता की भावना पैदा होती है।
  • क्षेत्रीय राजनीति की संकीर्णता कम होती है।

🔹 राष्ट्रपति प्रणाली के नुकसान (Cons of Presidential System)

  1. निरंकुशता का खतरा (Risk of Autocracy)
  • शक्ति का केंद्रीकरण हो सकता है।
  • अगर checks and balances कमजोर हों, तो लोकतंत्र पर खतरा हो सकता है।
  1. भारतीय विविधता के लिए चुनौती (Challenge for Indian Diversity)
  • भारत एक बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी देश है।
  • एक ही नेता पूरे देश के लिए हमेशा उपयुक्त नहीं हो सकता।
  1. संसदीय प्रणाली की जड़ों का टूटना (Disruption of Parliamentary Roots)
  • भारतीय राजनीति, चुनाव और प्रशासन संसदीय प्रणाली पर आधारित है।
  • बदलाव से स्थानीय शासन और लोकतांत्रिक संस्कृति प्रभावित हो सकती है।
  1. शक्तियों का असंतुलन (Power Imbalance)
  • यदि न्यायपालिका और संसद कमजोर हो जाए, तो राष्ट्रपति की शक्ति बेलगाम (Unchecked) हो सकती है।

🔹 निष्कर्ष (Conclusion)

  • भारत में पूर्ण राष्ट्रपति प्रणाली अपनाना संभव है, लेकिन इसके साथ सावधानी और संवैधानिक सुरक्षा जरूरी है।
  • संतुलन बनाए रखने के लिए विकल्प:
  1. अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली (Semi-Presidential System)
  2. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को सीधे चुनना
  3. न्यायपालिका और संसद की शक्तियों को मजबूत बनाना

🇫🇷 भारत में अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली का विकल्प (Semi-Presidential System Option in India)

पूर्ण राष्ट्रपति प्रणाली अपनाने के बजाय अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली (Semi-Presidential System) भारत के लिए एक मध्यस्थ विकल्प हो सकती है। यह मॉडल फ्रांस (France) और कुछ यूरोपीय देशों में प्रभावी रूप से लागू है।

🔹 अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली क्या है? (What is Semi-Presidential System)

  • कार्यपालिका दो हिस्सों में विभाजित होती है:
  1. राष्ट्रपति (President) – राष्ट्र का प्रमुख, राष्ट्रीय नीतियों में नेतृत्व।
  2. प्रधानमंत्री (Prime Minister) – संसद के प्रति उत्तरदायी, देश की रोज़मर्रा की प्रशासनिक जिम्मेदारी।
  • राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों साझा रूप से कार्यपालिका का नेतृत्व करते हैं।
  • उदाहरण: फ्रांस, जहां राष्ट्रपति विदेश नीति और सुरक्षा में सक्रिय और प्रधानमंत्री घरेलू प्रशासन संभालते हैं।

🔹 अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली के फायदे (Advantages)

  1. राजनीतिक स्थिरता और संतुलन (Political Stability and Balance)
  • राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों के बीच शक्ति का संतुलन (Power Balance) रहता है।
  • सत्ता का केंद्रीकरण कम होता है।
  1. संसदीय लोकतंत्र का संरक्षण (Preservation of Parliamentary Democracy)
  • प्रधानमंत्री संसद के प्रति उत्तरदायी रहता है।
  • लोकतंत्र और जनता की भागीदारी बनी रहती है।
  1. निर्णय में दक्षता (Efficiency in Decision-Making)
  • राष्ट्रपति राष्ट्रीय स्तर के महत्वपूर्ण निर्णयों में सक्रिय।
  • प्रधानमंत्री रोज़मर्रा के प्रशासनिक कार्यों में दक्ष।
  1. भारतीय विविधता के अनुकूल (Compatible with Indian Diversity)
  • क्षेत्रीय और भाषाई विविधता को ध्यान में रखते हुए सशक्त स्थानीय नेतृत्व बनाए रखा जा सकता है।

🔹 अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली के चुनौतीपूर्ण पहलू (Challenges)

  1. सत्ता संघर्ष का खतरा (Risk of Power Struggle)
  • राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच संघर्ष (Conflict) हो सकता है।
  • खासकर यदि दोनों अलग पार्टियों से हों।
  1. संविधान और नियमों की जटिलता (Constitutional and Legal Complexity)
  • नई व्यवस्था लागू करने के लिए संविधान संशोधन और कानूनी ढांचा आवश्यक।
  1. राजनीतिक समझौते आवश्यक (Political Consensus Needed)
  • देश भर में राजनीतिक दलों का सहयोग जरूरी।
  • सामाजिक और क्षेत्रीय मतभेदों का समाधान करना चुनौतीपूर्ण।

🔹 भारत में अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली के संभावित मॉडल (Potential Model for India)

तत्व (Element)प्रस्तावित व्यवस्था (Proposed Arrangement)
राष्ट्रपति (President)सीधे जनता द्वारा चुना जाए, राष्ट्रीय नीतियों, विदेश नीति और रक्षा में नेतृत्व।
प्रधानमंत्री (Prime Minister)संसद के प्रति उत्तरदायी, रोज़मर्रा के प्रशासनिक और आर्थिक कार्य।
मंत्रिमंडल (Cabinet)प्रधानमंत्री के नेतृत्व में, राष्ट्रपति की सलाह से नियुक्त।
कार्यकाल (Term)राष्ट्रपति 5 वर्ष, प्रधानमंत्री संसद के कार्यकाल पर आधारित।

🔹 निष्कर्ष (Conclusion)

  • अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली भारत के लिए एक व्यावहारिक विकल्प है।
  • यह राजनीतिक स्थिरता और प्रशासनिक दक्षता दोनों प्रदान कर सकती है।
  • साथ ही, भारतीय लोकतंत्र और विविधता को भी संरक्षित रखती है।
  • इसे अपनाने के लिए सामाजिक स्वीकृति, संवैधानिक संशोधन और राजनीतिक इच्छाशक्ति आवश्यक है।

🗣️ भारत में राष्ट्रपति प्रणाली लागू करने पर विशेषज्ञ और जनता की राय (Expert & Public Opinion on Presidential System in India)

भारत में राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential System in India) अपनाने का विचार केवल संविधानिक नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक बहस का विषय भी है। इस भाग में हम विशेषज्ञों की राय, जनता की धारणा और संभावित चुनौतियों पर गहराई से चर्चा करेंगे।

🔹 विशेषज्ञों की राय (Experts’ Perspective)

  1. रामचंद्र गुहा (Historian)
  • मानते हैं कि व्यक्ति पूजा की राजनीति (Personality-driven Politics) ने संसदीय प्रणाली को कमजोर किया है।
  • उनका सुझाव: यदि राष्ट्रपति प्रणाली लागू की जाए, तो नेतृत्व स्थिर होगा और जिम्मेदारी स्पष्ट होगी।
  1. शशि थरूर (MP, Author)
  • उनके अनुसार, राष्ट्रपति प्रणाली सत्ता के केंद्रीकरण (Centralization of Power) की ओर ले जा सकती है।
  • वे चेतावनी देते हैं कि भारतीय विविधता में यह प्रणाली चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
  1. अरुण शौरी (Former Minister)
  • उनका दृष्टिकोण है कि भारत में कार्यपालिका की पुनर्रचना (Restructuring of Executive) आवश्यक है।
  • वे अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली या प्रधानमंत्री का सीधे चुनाव पर विचार करने की सलाह देते हैं।
  1. संवैधानिक विशेषज्ञ (Constitutional Experts)
  • मानते हैं कि संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) आवश्यक होगा।
  • उन्हें चिंता है कि राष्ट्रपति और संसद के बीच शक्ति संतुलन (Power Balance) बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा।

🔹 जनता की राय (Public Opinion)

  • हाल के सर्वेक्षण और सोशल मीडिया बहस (Surveys & Social Media Debates) दिखाते हैं कि लोग स्थिर और सीधे चुने गए नेतृत्व (Stable & Directly Elected Leadership) की मांग कर रहे हैं।
  • विशेषकर युवाओं (Youth) में यह भावना ज्यादा प्रबल है कि प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति सीधे चुने जाएं, जिससे प्रशासनिक निर्णय तेज़ और प्रभावी हों।
  • लोकतांत्रिक भागीदारी (Democratic Participation) में वृद्धि और नेतृत्व की जवाबदेही (Leadership Accountability) भी प्रमुख चिंताएँ हैं।

🔹 संभावित चुनौतियाँ (Potential Challenges)

  1. सत्ता का केंद्रीकरण (Power Centralization)
  • राष्ट्रपति प्रणाली में कार्यपालिका संसद से स्वतंत्र (Independent of Parliament) होगी।
  • यह शक्ति का केंद्रीकरण (Centralization of Power) और निरंकुश नेतृत्व (Autocratic Leadership) की संभावना बढ़ा सकता है।
  1. भारतीय विविधता और प्रतिनिधित्व (Diversity & Representation)
  • भारत का भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता (Linguistic, Cultural & Religious Diversity) एक ही नेता को स्वीकार करने में बाधा डाल सकती है।
  1. राजनीतिक और संवैधानिक तैयारी (Political & Constitutional Readiness)
  • बड़े बदलाव के लिए सामाजिक स्वीकृति और राजनीतिक इच्छाशक्ति (Social Acceptance & Political Will) आवश्यक है।

🔹 निष्कर्ष (Conclusion)

  • विशेषज्ञ और जनता दोनों ही राष्ट्रपति प्रणाली के पक्ष और विपक्ष को लेकर सतर्क हैं।
  • स्थिर नेतृत्व (Stable Leadership) और प्रत्यक्ष जनादेश (Direct Mandate) इसके मुख्य लाभ हैं।
  • वहीं, शक्ति का केंद्रीकरण (Centralization of Power) और भारतीय विविधता के लिए चुनौती (Challenge for Diversity) संभावित जोखिम हैं।
  • यह बहस इस बात को उजागर करती है कि भारत को किसी भी बड़े संवैधानिक बदलाव के लिए व्यापक तैयारी और सहमति (Wide Preparation & Consensus) की जरूरत है।

🏛️ भारत के लिए राष्ट्रपति प्रणाली या अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली: अंतिम विश्लेषण और सुझाव (Final Analysis & Recommendation for India)

भारत में राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential System in India) अपनाने का विचार केवल राजनीतिक बहस नहीं है, बल्कि यह देश के लोकतांत्रिक भविष्य (Democratic Future) को प्रभावित कर सकता है। इस अंतिम भाग में हम संपूर्ण विश्लेषण, विकल्प और सुझाव प्रस्तुत करेंगे।

🔹 भारत में राष्ट्रपति प्रणाली का विश्लेषण (Analysis of Presidential System in India)

  1. स्थिरता और जवाबदेही (Stability & Accountability)
  • राष्ट्रपति प्रणाली में कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित (Fixed Term) होता है।
  • इससे सरकार गिरने की संभावना कम (Reduced Possibility of Government Collapse) होती है और निर्णय तेज़ी से लिए जा सकते हैं।
  1. प्रत्यक्ष जनादेश (Direct Mandate)
  • जनता सीधे राष्ट्रपति चुनती है, जिससे लोकतंत्र और नागरिक भागीदारी (Democracy & Citizen Participation) बढ़ती है।
  1. कार्यकारी स्वतंत्रता (Executive Independence)
  • मंत्री और राष्ट्रपति सीधे जनता/संविधान के प्रति जवाबदेह होते हैं, जिससे राजनीतिक सौदेबाज़ी (Political Bargaining) कम हो सकती है।

🔹 अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली का विकल्प (Semi-Presidential System as an Alternative)

अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली (Semi-Presidential System) में:

  • राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों मौजूद होते हैं।
  • राष्ट्रपति प्रमुख कार्यकारी शक्तियाँ रखते हैं, जबकि प्रधानमंत्री संसद के प्रति उत्तरदायी होता है।
  • यह स्थिरता और लोकतांत्रिक संतुलन (Stability & Democratic Balance) दोनों प्रदान कर सकता है।

उदाहरण: फ्रांस (France) में यह प्रणाली लागू है और काफी हद तक सफल रही है।

🔹 सुझाव (Recommendations)

  1. पूर्ण राष्ट्रपति प्रणाली की बजाय अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली (Semi-Presidential over Full Presidential)
  • यह प्रणाली भारतीय विविधता (Diversity) और लोकतांत्रिक अनुभव के अनुकूल है।
  1. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों का सीधे चुनाव (Direct Election of PM & CMs)
  • इससे स्थिर नेतृत्व (Stable Leadership) और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व (Regional Representation) सुनिश्चित होगा।
  1. संसदीय और न्यायपालिका की भूमिका मजबूत करना (Strengthen Parliament & Judiciary)
  • शक्ति का संतुलन बनाए रखने के लिए संसद और न्यायपालिका (Parliament & Judiciary) को और प्रभावशाली बनाना आवश्यक है।
  1. सार्वजनिक शिक्षा और बहस (Public Awareness & Debate)
  • बड़े संवैधानिक बदलाव से पहले जनता और विशेषज्ञों में व्यापक बहस (Wide Debate) जरूरी है।

🔹 निष्कर्ष (Conclusion)

  • भारत के लिए पूर्ण राष्ट्रपति प्रणाली (Full Presidential System) चुनौतियों से भरी हो सकती है।
  • अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली (Semi-Presidential System) या प्रधानमंत्री के सीधे चुनाव (Direct PM Election) जैसे विकल्प अधिक संतुलित, सुरक्षित और लोकतांत्रिक हैं।
  • सबसे महत्वपूर्ण: भारत में किसी भी बदलाव के लिए संविधानिक तैयारी, राजनीतिक इच्छाशक्ति और सामाजिक सहमति (Constitutional Preparation, Political Will & Social Consensus) आवश्यक है।

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